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है कि समाज में संवेदनशीलता का विकास हो।
संदेह के कारण आज परस्पर शत्रुता का वातावरण बन रहा है। आदमी-आदमी के बीच, एक राष्ट्र और दूसरे राष्ट्र के बीच संदेह की खाई निरंतर चौड़ी होती जा रही है। मैत्री का विकास हो, संदेह मिटे, यह आवश्यक है। मैत्री की भावना उदात्त होती है तो अपने आप एक नये वातावरण की सृष्टि होती है, जीवन सुखद बनता है। पवित्र त्रिपथगा जीवनशैली का चौथा सूत्र है-समण संस्कृति। समण प्रतीक है समानता का। समण प्रतीक है-उपशम और शान्ति का, समण प्रतीक है तपस्या, श्रम और पुरुषार्थ का। समण संस्कृति ने एक त्रिपथगा प्रवाहित की थी। यह भारत की एक पवित्र गंगा है, जिसने तीन पथों में विकास किया था, जिसके तीन आयाम बने थे।
समानता न केवल मनुष्य के प्रति, किन्तु प्राणीमात्र के प्रति। जब तक प्राणीमात्र को समानता की दृष्टि से नहीं देखेगा, मनुष्य स्वयं को दूसरे के समान नहीं देख पायेगा। प्राणीमात्र के प्रति समत्व का भाव जागेगा, तभी हिंसा कम होगी। समण संस्कृति में हिंसा के अल्पीकरण
और अहिंसा के विकास की दिशा में जो प्रस्थान किया था, उसका पहला सूत्र बनता है-समानता। ___समण संस्कृति ने दूसरा सूत्र दिया-उपशम या शान्ति का। कषाय शान्त हो, निषेधात्मक भाव न जागे, क्रोध, मान, माया और लोभ का अल्पीकरण हो, तभी शान्ति संभव है। यह शान्ति का सूत्र समण संस्कृति ने विकसित किया था।
समण संस्कृति ने तीसरा सूत्र दिया-श्रमशीलता। तपस्या करना, स्वावलंबन, अपने श्रम पर भरोसा करना, यह श्रम की जीवनशैली है। श्रम-परांगमुखता का निदर्शन आज आदमी श्रम से जी चुरा रहा है इसीलिए समस्याएं भी पैदा हो रही हैं। वह स्वयं को बड़ा आदमी मान कर श्रम से कतराता है। काम करने के लिए नौकर हैं, फिर हमें काम करने की क्या जरूरत है ? इतना
जीवनशैली के नौ सूत्र / १०६
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