Book Title: Vichar ko Badalna Sikhe
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 184
________________ और साथ-साथ संतान के संस्कारों का भी निर्माण करे। क्योंकि संतान का संबंध जितना माता के साथ होता है, उतना पिता के साथ नहीं होता । उसे साहचर्य भी जितना माता का मिलता है, उतना पिता का नहीं । बहुत सारे पिता तो ऐसे होते हैं, जो बच्चों को सोया हुआ ही देखते हैं । स्थिति ही कुछ ऐसी बन गयी है - देर रात को जब पिता लौट कर आता है तब तक बच्चा सो चुका होता है और सेवेरे जब बच्चा स्कूल जाता है, तब तक पिता सोये रहते हैं । जरूरी है स्वयं के संस्कारों का निर्माण किसी ने एक व्यक्ति से पूछा - 'तुम्हारा लड़का कितना बड़ा हो गया ? उसने हाथ फैलाते हुए कहा - 'इतना बड़ा ।' उसने कहा - महाशय ! बच्चा तो खंभे की तरह बढ़ता है, चारपाई की तरह नहीं । उस व्यक्ति ने कहा- 'मैंने उसे सदा पलंग पर सोऐ हुए ही देखा है ।' पिता को हर काम के लिए फुर्सत है, पर बच्चे के संस्कारनिर्माण के लिए फुर्सत नहीं है, किन्तु मां का बच्चे के साथ निरन्तर सम्पर्क रहता है। प्रातःकाल मुनिजी घरों में भिक्षा के लिए गए। बहनों से पूछा - 'इतनी जल्दी रसोई बना ली ? वे बोलीं- 'महाराज ! क्या करें, बच्चों को स्कूल जल्दी जाना पड़ता है ।' पिता अभी तक सोया ही है और मां ने बच्चों को खाना खिला कर स्कूल भी भेज दिया । यह मां का काम है । आन्तरिक संबंध भी जितना मां का बच्चों के साथ होता है, उतना पिता के साथ नहीं होता । यह एक सहज मनोवृत्ति है । संस्कार - निर्माण करने वाले व्यक्ति को पहले समझ लेना है कि किसका निर्माण करना है ? दूसरे के संस्कारों का निर्माण करने से पहले स्वयं के संस्कारों का निर्माण जरूरी है । स्वयं को संस्कृत बनाकर ही व्यक्ति दूसरों का संस्कार - निर्माण कर पाता है । स्वार्थ का सीमाकरण संस्कार निर्माण का पहला सूत्र है - स्वार्थ का सीमाकरण । यह नहीं कहा जा सकता कि स्वार्थ को छोड़ दिया जाए । कोई भी व्यक्ति सर्वथा स्वार्थ को छोड़ नहीं सकता । राजनीतिक प्रणालियों में कितने परीक्षण हो गये । १७० / विचार को बदलना सीखें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194