Book Title: Vichar ko Badalna Sikhe
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 173
________________ पर नहीं है । इसलिए हमेशा कान भरे जाएंगे कि दूसरा तुम्हारे बारे में क्या कहता है ? दूसरा जो कहता है, वह कहता है, पर तुम्हारी आत्मा तुम्हारे बारे में क्या कहती है ? तुम अपने आपसे क्या कहते हो ? दूसरे की अपनी इच्छा है । तुम एक काम करते हो, संभव है, वह दूसरे को अच्छा न लगता हो । सबका अलग-अलग चिंतन है । चिंतन की इतनी स्वतंत्रता और विविधता है कि कहीं किसी को बांधा नहीं जा सकता। अगर दूसरों के चिंतन के आधार पर हम अपने आपको देखें तो कभी शान्ति का जीवन जीया नहीं जा सकेगा । शान्ति का जीवन जीने के लिए शक्ति का जीवन जीना बहुत जरूरी है । जिस व्यक्ति में शक्ति नहीं है, जो कमजोर और कायर है, वह शान्ति का जीवन नहीं जी सकता । वह बात-बात पर प्रभावित हो जायेगा । दूसरों की बात से स्वयं को बचा सके, यह तभी संभव है जब व्यक्ति शक्तिशाली हो । इसलिए पहले शान्ति की नहीं, शक्ति की साधना जरूरी है । इस दुनिया में उसी को जीने का अधिकार होता है, जो शक्तिशाली है । विकासवाद या इवोल्यूशन का यह सिद्धान्त ही है - जो शक्तिशाली होता है, वही इस दुनिया में जीता है, जो कमजोर होता है, वह समाप्त हो जाता है । शक्तिशाली वही होता है, जिसे अपना भरोसा हो । दूसरों के भरोसे पर जीने वाला कभी शक्तिशाली नहीं होता । उसे दूसरा कभी भी धोखा दे सकता है I दो बूढ़े आदमी जंगल की ओर जा रहे थे। गांव के बाहर एक कुआं आया । वे कुएं पर ठहर गए, सोचा - यहीं पानी पियेंगे, स्नान करेंगे, पुराने जमाने में बाथरूम नहीं होते थे । कुएं की फर्श ही बाथरूम होती थी। एक ने कुएं से पानी निकाला और स्नान करने लगा। दूसरा कुएं की गहराई देखने के लिए कुएं में झांकने लगा । अकस्मात् पैर फिसला, वह कुएं में गिर गया। कुआ पुराना था । उसकी दीवार में एक पेड़ उगा हुआ था। उसने पेड़ की शाखा को पकड़ लिया और सहायता के लिए आवाज लगाई। दूसरे ने दौड़ कर देखा उसका साथी कुएं में पेड़ को पकड़े लटक रहा है। उसने कहा- जल्दी से बाजार जाओ, मजबूत रस्सी . लेकर आओ, तब तक मैं किसी तरह इस पेड़ को पकड़े लटका हूं। वह बाजार गया, घूमघाम कर दो घंटे बाद लौटा। कुएं में लटक रहे आदमी ने कातर स्वर में पूछा - 'रस्सी ले आए ? वह बोला- 'नहीं भाई, रस्सी तो Jain Education International शान्ति और शक्ति के साथ जीयें / १५६ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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