Book Title: Vichar ko Badalna Sikhe
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 175
________________ हमारा अपना अनुभव है । पूज्य गुरुदेव ने धर्मसंघ में बहुत सारे परिवर्तन किये। पहले चिंतन किया । चिंतन के बाद लगा -- इस परंपरा को अब बदल देना चाहिए, अब इसका कोई अर्थ नहीं रहा तो फिर उसे बदल ही दिया । कोई कुछ भी कहता रहे, फिर कोई फर्क नहीं पड़ा। यदि हमने सोच-विचार कर कोई काम किया है तो दूसरों के कहने से क्या होगा और सोच-विचार कर नहीं किया है तो फिर उसका कोई मतलब ही नहीं है । आत्मविश्वास होना बहुत जरूरी है और वही व्यक्ति शक्ति और शांति का जीवन जी सकता है, जिसमें आत्मविश्वास होता है 1 सनकी स्वभाव से बचें 1 शक्ति का जीवन जीने का दूसरा सूत्र है सनकी स्वभाव से बचना । सनकी स्वभाव का व्यक्ति अपनी कल्पना से अशुभ का निर्माण कर लेता है । कोई वास्तविकता नहीं होती । मन ही मन कल्पना करता है और वह कल्पना भी बहुत अशुभ सिद्ध होती है । यह सनकी स्वभाव है | बहुत सारे लोगों में यह सनक की आदत होती है । यह सनकी स्वभाव जीवन को शक्तिशाली नहीं बनने देता। कुछ लोगों में वहम भी बहुत होता है । इतने दिन हो गये, अभी तक कोई समाचार नहीं आया, न जाने क्या बात हो गयी। नींद हराम हो जाती है । यह अपने मन की कमजोरी है । मन इतना दुर्बल होता है कि कोई आशंका सहन नहीं होती । यह ज्यादा संदेह, ज्यादा वहम और कल्पना के घोड़े दौड़ाना - ये सब आदमी को कमजोर बनाते हैं। श्वासप्रेक्षा का अभ्यास मूल्यवान् इसीलिए है कि इससे हम वर्तमान में जीना सीखते हैं 1 जब वर्तमान में जीना सीख लेते हैं तब अनावश्यक कल्पनाओं को रोक लेते हैं । ये अनावश्यक कल्पनाएं आदमी को भीतर और बाहर दोनों ओर से इतना कमजोर बना देती हैं कि जीना शान्तिमय नहीं रहता । शक्ति का तात्पर्य है - अपनी कल्पनाओं को भी रोकने की शक्ति होनी चाहिए। यह विवेक जागृत रहे - यह कल्पना करनी है और यह कल्पना नहीं करनी है। जैसे ही मन में कोई बुरी कल्पना आये, तत्काल उसे मन से निकाल देना चाहिए। इसके लिए प्रयोग करें दीर्घश्वास का, कायोत्सर्ग और ज्योतिकेन्द्र प्रेक्षा का जिससे वह कल्पना मन में प्रवेश न कर पाए । Jain Education International शान्ति और शक्ति के साथ जीयें / १६१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194