Book Title: Vichar ko Badalna Sikhe
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 157
________________ तब तक दुःख देता रहेगा। वह प्राण भी ले सकता है। जब तक वह भीतर की ज्वाला शांत नहीं होगी, आदमी उसकी भट्टी में जलता रहेगा। हम कर्मवाद के इस सिद्धांत को समझें-हमारे भीतर अग्निकुंड और हिमालय दोनों हैं। महावीर ने अपनी वैज्ञानिक भाषा में कहा-प्रत्येक मनुष्य के भीतर दो प्रकार की प्रणालियां चल रही हैं। एक है औदयिकभाव और दूसरा है क्षायोपशमिकभाव। एक कर्म के उदय की प्रणाली है और दूसरी कर्म के विलय की प्रणाली है। जो उदय की प्रणाली है, उसे अग्निकुण्ड कहा जा सकता है और जो क्षायोपशमिक प्रणाली है, उसे हिमालय या हिमकुण्ड कहा जा सकता है। मनोवैज्ञानिकों का कथन आज के मनोवैज्ञानिक भी इन दोनों प्रणालियों का समर्थन करते हैं। वे यह भी मानते हैं कि दो प्रकार के व्यक्तित्व एक साथ काम कर रहे हैं। वे अभी इसकी पूरी व्याख्या तो नहीं कर पाये हैं, किन्तु यह माना जा रहा है कि आदमी में दो मस्तिष्क काम करते हैं। मनोवैज्ञानिकों ने इस संदर्भ में एक घटना का विवरण दिया-'एक आदमी को सोते हुए सपना आया। वह सपने में ही उठा और एक हाथ से पत्नी को तेज चांटा मारने लगा, दूसरे हाथ से पुचकारने और सहलाने भी लगा।' इस घटना की इस प्रकार व्याख्या की गई, यह निष्कर्ष निकाला गया- “एक व्यक्तित्व क्रोध में आकर उसे मार रहा है और दूसरा व्यक्तित्व प्यार से उसे सांत्वना दे रहा है।' मनोवैज्ञानिक अनकांसियस माइंड तक पहुंचे हैं, किन्तु कर्मवाद तक पूरी तरह नहीं पहुंच पाए हैं। यदि यह बात समझ में आ जाए कि हमारे भीतर दो प्रकार की प्रणालियां काम कर रही हैं, तो निश्चय ही आश्चर्यजनक तथ्य सामने आएंगे। यदि हम क्षयोपशम भाव को प्रबल बना लें तो हमारा व्यक्तित्व बदल सकता है। कर्मवाद का मूलभूत सिद्धान्त बदलने का पहला उपाय इस सचाई का अनुभव करना है कि जो कुछ हो रहा है, उसके लिए उत्तरदायी मैं हूं। आज की सबसे बड़ी विडंबना यही है कि आदमी दायित्व स्वयं पर लेना नहीं चाहता। वह प्रत्येक बात के लिए हिमकुण्ड और अग्निकुण्ड दोनों आदमी में / १४३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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