Book Title: Vichar ko Badalna Sikhe
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 139
________________ आवश्यक है अध्यात्म और विज्ञान स्वास्थ्य के विषय में मैं अध्यात्म की चर्चा करना चाहता हूं और साथ ही साथ विज्ञान की भी चर्चा करूंगा। मैं नहीं मानता कि अध्यात्म और विज्ञान दो हैं। मेरी दृष्टि में ये दो नहीं हैं, भिन्न नहीं हैं। सत्य की खोज चाहे हम अतीन्द्रिय चेतना के माध्यम से करें, चाहे वैज्ञानिक उपकरणों के द्वारा करें, सूक्ष्म की खोज विज्ञान के लिए भी अभीष्ट है और अध्यात्म को भी यह इष्ट है। यह अन्तर हो सकता है कि विज्ञान के सामने केवल भौतिक जगत् रहा। भौतिक विज्ञान के संदर्भ में इसका विकास हुआ। अध्यात्म के आचार्यों के सामने मुख्यतः आत्मा और चैतन्य रहे। उन्होंने इसी पर अधिक खोजें की, किन्तु कोई भी भौतिकविज्ञानी चेतना से हट कर कोई खोज नहीं कर सकता। केवल उपकरणों के द्वारा कोई सार्थक खोज नहीं हो सकती और कोई भी अध्यात्म का विज्ञानी केवल चैतन्य के आधार पर उन खोजों को आगे नहीं बढ़ा सकता। अध्यात्म के जो महान् आचार्य हुए हैं, उन्होंने अचेतन और जड़ पदार्थ की खोज भी की है। दोनों के बिना हमारा समन्वित व्यवहार नहीं चलता। इसलिए विज्ञान और अध्यात्म के बीच में कोई लक्ष्मण रेखा खींचना अभीष्ट नहीं होगा। यदि विज्ञान का व्यवसायीकरण हआ है तो आज योग का भी व्यवसायीकरण हुआ है। ये दोनों बातें वांछनीय नहीं हैं। दोनों ही सत्य की खोज के लिए हैं इसलिए दोनों का योग बहुत आवश्यक है। समाज में हिंसा कम हो, इस प्रश्न पर विचार करें तो जीवनशैली का प्रश्न प्रमुख रूप से हमारे सामने आता है। जीवनशैली के मूल तत्त्व हैं-समता, संयम, सहिष्णुता, अनासक्ति। इनके अभाव में अपराध, असंतुलन, विषमता और हिंसा बढ़ती है। अध्यवसाय और लेश्या अध्यात्म का एक शब्द है-अध्यवसाय। अध्यवसाय हमारा स्वस्थ नहीं होता है तो हमारी सारी श्रृंखला गड़बड़ा जाती है। विज्ञान की भाषा में हम इसे डिसऑर्डर ऑफ प्राइमल ड्राइव्स कह सकते हैं। जब प्राइमल ड्राइव्स का डिसऑर्डर होता है तब आगे की सारी श्रृंखला गड़बड़ा जाती है। अध्यवसाय के बाद का स्तर है लेश्या। प्रेक्षाध्यान में लेश्याध्यान का प्रयोग होता है। स्वास्थ्य : अध्यात्म और विज्ञान के संदर्भ में / १२५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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