Book Title: Vichar ko Badalna Sikhe
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 152
________________ किसी के साथ अन्याय कर रहा हूं, कोई अतिक्रमण कर रहा हूं, दूसरे को सता रहा हूं तो इसका परिणाम क्या होगा ? ___भारतीय चिन्तन और दर्शन का एक बहुत बड़ा सिद्धान्त रहा है-कृत कर्मों को भोगे बिना छुटकारा नहीं है। आदमी जो कुछ भी करता है, उसका अंकन हमारे मस्तिष्क में हो जाता है, सूक्ष्म-शरीर और कर्मशरीर में हो जाता है। उस क्रिया की प्रतिक्रिया होती है और व्यक्ति को अपने कृत का परिणाम भुगतना पड़ता है। चाहे इस जन्म में भुगतना पड़े या अगले जन्म में किन्तु कर्म फल से कोई व्यक्ति बच नहीं सकता। यह कर्म का सिद्धान्त, आत्मकर्तत्व का सिद्धान्त अथवा अपने उत्तरदायित्व का सिद्धान्त समझ में आ जाये तो आदमी का आचार बहुत बदल जाए। किसी को धोखा देना, ठग लेना वर्तमान में बहुत अच्छा लगता है। किसी का धन चरा लेना, अपहरण कर लेना, शोषण करना व्यक्ति को प्रिय लगता है, किन्तु जब परिणाम आता है, तब पश्चाताप के सिवाय कुछ भी हाथ नहीं लगता। उस स्थिति में आदमी रोता है, बिलखता और कलपता है। हिमकुण्ड : तप्तकुण्ड हम इस प्रश्न पर विचार करें-आखिर उत्तरदायी कौन है ? अच्छा और बुरा-दोनों होते हैं। हिमकुण्ड भी है और अग्निकुण्ड भी है। सुना है कि हिमालय पर दो कुण्ड हैं-हिमकुण्ड और तप्तकुण्ड। हिमालय शीतलता और शान्ति का प्रतीक है। ऐसी जगह ऊष्मा या आग की कल्पना कैसे की जा सकती है ? किन्तु है हिमालय में भी तप्तकुण्ड। प्रतीक की भाषा में कहें तो अनुकूलता और प्रतिकूलता-ये दोनों स्थितियां प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में आती हैं। उसके जीवन में शांति भी है, अशांति भी है, सुख भी है, दुःख भी है। लोकतंत्र में सरकार उत्तरदायी होती है जनता के प्रति, संविधान के प्रति। तानाशाही सरकार उत्तरदायी नहीं होती, किन्तु चुनावों में निर्वाचित जन-प्रतिनिधि जनता के प्रति उत्तरदायी होते हैं। देश में जो कुछ अच्छा या बुरा होता है, उसकी जिम्मेदारी से वे बच नहीं सकते। प्रश्न है व्यक्ति के जीवन में जो कुछ घट रहा है, उसका उत्तरदायी कौन है ? यदि यह बात समझ में आ जाए तो बहुत सारी आपदाएं टल जाएं, दुःख बहुत कम १३८ / विचार को बदलना सीखें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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