Book Title: Vichar Ratnakar Author(s): Kirtivijay Upadhyay, Vijayjjinendrasuri Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala View full book textPage 4
________________ श्री विचार संपाद संपादकीय रत्नाकर काय ||३|| 张發發發發發發發發發發發發發發發發發發發發张张张 श्री अरिहंत परमात्माओ तीर्थनी स्थापना करे छे. ते तीर्थ श्रुतना आधारे प्रवर्ते छे. द्वादशांङ्गी अने तेने आश्रीने रचायेलु श्रुत ए शासन छे. तेना द्वारा आत्माने परमात्माना शासननो विश्वास बसे छे. शंकाओ अने विकल्पोनो क्षय थाय छे अने आत्मा साचा अर्थमां परमात्मानो उपासक बने छे. विचाररत्नाकर ग्रन्थ ए एवी जिज्ञासाओने संतोषवानो महाग्रन्थ छे. अंग उपांगादि सूत्रोने आधारे अत्यंत महत्वना समाधानो आप्या छे. जे वर्तमानमा प्रचाराता अने खोटी पक्कडथी आगल धराता सवालोना जवाबो आपे छे. मूर्ति श्रद्धा अने सामाचारीना अनेक प्रश्नो हल करे छे. नि:शंक बनावे छे. आगमो उपरांत प्रकरणोना आधारे पण प्रश्नोने समजाव्या छे. समाधानो-आचारांगसूत्रथी १४, सूत्रकृतांग सूत्रथी २१, ठाणांगसूत्रथी १९, समवायांगसूत्रथी ३, भगवतीसूत्रथी १९, ज्ञातासूत्रथी ७, उपासक सूत्रथी २, अन्तकृत्दशासूत्रथी १, अनुत्तरीपातिकसूत्रथी १, प्रश्नव्याकरणसूत्रथी २, विपाकसूत्रथी २, औपपातिकसूत्रथी २, राजप्रश्नीय सूत्रथी ५, जीवाभिगम सूत्रथी ८, प्रज्ञापना सूत्रथी ११, जंबूद्वीप प्रज्ञप्तिथी २, चंद्रप्रज्ञप्तिथी २, सूर्य प्रज्ञप्तिथी २, निरयावलिकासूत्रथी १, नन्दीसूत्रथी ४, अनुयोगद्वारसूत्रेथी ३, आवश्यकसूत्र दशवैकालिकसुत्र, उत्तराध्ययन सूत्रथी १७, निशीथ सूत्रथी ९, महानिशीथसूत्रथी १३, दशा श्रुतस्कंधसूत्रथी १, बृहत्कल्पसूत्रथी ६, व्यवहारसूत्रथी १०, पंचकल्पसूत्रथी १, प्रकीर्णप्रकरणादिथी ८९ समाधानो कुल २७३ समाधानो आप्या छे-जे अद्भुत छे. आवा महान ग्रन्थना सर्जक पू. आ. भ. श्री विजयहीरसूरीश्वरजी म. ना शिष्यरल उपाध्यायश्री कीर्तिविजयजी गणिवर छे. आ महान ग्रन्थ आगम तूल्य छे अने आगमनी अनुप्रेक्षा रूप छे. सौ ते वांचीने आगमसूत्रना आधारे निःशंक बने अने जैन शासन श्रुतने जयवंत करे एज अभिलाषा. वि. सं. २०५७ फागण वद १३ गुरुवार ता. २२-३-२००१ जिनेन्द्रसूरि ||३||Page Navigation
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