Book Title: Vastravarnasiddhi
Author(s): Chandanmal Nagori
Publisher: Sadgun Prasarak Mitra Mandal

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Page 7
________________ भूमिका. वस्त्र वर्ण सिद्धि पर मेरा विचार. जैन साहित्य संसार के विशाल क्षेत्रकी महान प्रशादी में से किंचित वक्तव्य लिखनेका सौभाग्य क्षुद्रात्माको प्राप्त हुआ देख, विचार उत्पन्न होता है | विचार क्षेत्र एसा प्रबल प्रतापी कोष है, कि जिसकी शक्तिने अनेकानेक लाभ जन समुदाय प्राप्त करती है । उसही विशाल क्षेत्र की विचार धारा का मनुष्य भी अधिकारी है । अस्तु. मनुष्य अपने विचार भिन्न भिन्न तरह से प्रदर्शित करसक्ता है. पशुपक्षी आदि अपने विचार प्राप्य शक्तिनुसार संकेतिक हलचल द्वारा किंवा थोडी चुनी हुइ विशिष्ट प्रकार की ध्वनिसे प्रकट करते हैं. मानव जाति, पशु पक्षिकादिके अतिरिक्त क्रमि कीटकोंमें से बहुधा एसे जंतु है कि वे केवल अपने शारीरिक विशिष्ट अवयवों से ही अपने विचार प्रदर्शित किया करते हैं । किन्तु मनुष्य को अपने विचार प्रदर्शन प्रकट करनेको के एक साधन प्राप्य हैं-प्राप्य हैं इतना ही नहीं किन्तु तथा प्रकार की योजना भी मनुष्य मस्तिष्क में अधि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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