________________
(५)
भावार्थ-साधु के उद्देपसे विक्रय लिया हुवा वस्त्र किंवा धोकर रंगवाकर, या और विशेषता प्राप्त कर साधु माहाराज प्रति लाभने के निमितही सव तैयारियां की हो एमा वस्त्र नहीं लेनेका कल्प है, और वह दुसरे पुरुष के उपयोग में आयाहो तो लेना कल्पनीय है। कहा है कि
प्रमाण ५ " से मि० नो वण्णमंताइ वत्थाई विवन्नाई करेजा"
भावार्थ-इस सूत्र का यह है कि साधु अच्छे वर्ण याने रंग वाले बलका वर्णन बिगाडे इसपर टीकाकार कहते हैं कि
प्रमाण ६ स भिक्षुकः वर्णवंति वस्त्राणि चौरादिभयात् नो विगतवर्णानि कुर्यात्.
भावार्थ-प्रभुकी आमा पालक साधु वस्त्र वर्ण को तस्करादि भय से परिवर्तन न करे, प्रथम तो एसे वस्त्रही नही लेना. यदि ले लिया है तो वर्ग परिवर्तन नही करना, इस कथन से सिद्ध होता है कि अच्छे वर्ण वाले वस्त्र साधु ग्रहण करें किन्तु रंग न पलटे, एसी शास्त्रकार माहाराज की आज्ञा सत्रों में है, साधुओं के लिये कथन करनमें मत्रकार व टीकाकारों ने कमी नहीं की है. साधु
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com