________________
( ३ )
इसी तरह से वल्कल से बना हुवा, ताड आदि पत्रों के मिश्रण से बना हुवा, कपास से पैदा होने वाला और अर्कादि के सूत्र से उत्पन्न हो, वह बम्र धारण करने की आज्ञा दी । अब विपक्ष व्यक्ति क्या उंट की रोमराय, या सण की स्वयं स्थिती को
त बना सकेंगे ? कदापि नही, तो यही सारांश निकलता है कि श्वेत के सिवाय भी वस्त्र कल्पनीय है । इसी प्रमाण के हेतु भूत टीकाकार भी लिखते हैं कि
प्रमाण २
66
स भिक्षुरभिकांक्षेद् वस्त्रमन्वेष्टुं तत्र यत्पुनरेवंभूतं वस्त्रं जानीयात्, तद्यथा-- जंगियंति, जङ्गमोष्ट्राचूर्णानिष्पन्नं, ' तथा ' भंगियंति नानाभङ्गिकविकलेन्द्रियलालानिष्पन्नं, तथा 'साणयं ' ति सणबल्कलनिष्पन्नं 'पोत्तगं' ति ताड्यादिपत्रसंघातनिष्पन्नं 'खोमियंति' कार्पासिकं 'तूलकडं' ति अर्कादितूलनिष्पन्नम्, एवं तथाप्रकार मन्यदपि वस्त्रं धारयेदित्युत्तरेण सम्बन्धः ॥ (इति)
श्रीमान् टीकाकार भगवन आज्ञा करते हैं कि वस्त्र लेनेकी इच्छा वाला · साधु तलाश करे और उसको उंटादि के रोमराय, विकलेन्द्रिय लार, सण वल्कल, ताड्य पत्र, कर्पास, अर्कादि से बना हुवा वस्त्र मालूम हो जाय किंवा वैसाही यदि दुसरा वस्त्र है तो
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com