Book Title: Vastravarnasiddhi
Author(s): Chandanmal Nagori
Publisher: Sadgun Prasarak Mitra Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 17
________________ भावार्थ, श्रीमान वाचकजी माहाराज का कथन है कि बकुश दो प्रकार के होते हैं, ( १ ) उपकरण बकुश, और ( २ ) शरीर बकुश, इन दो तरह के बकुश में उपकरण बकुश उसको कहते हैं कि, जिसको उपकरणादि विविध सामग्री में विशेष रागहो और वह अधिक मौल्यवान वस्तु ग्रहण करने की चेष्टा किया करे । किया करे इतना ही नही बहुधा विशेष और विशिष्ट प्रकार के उपकरण का संग्रह कर उनके संस्कार में याने समेटना, बांधना, आदि किमिया में ही दत्तचित रहे एसे साधु व्यक्ति को उपकरण बकुश कहते हैं, और देहपर ममत्व किंवा राग रखने वाला, विशेष प्रकार शुश्रुषा रखता हो, शरीरकी कोमलता बताकर तथा प्रकारकी योजना कायम रखनेको तत् पोषक पदार्थों द्वारा शरीर को बनाया करे एसे साधुओं को शरीर बकुश कहते हैं, एसा तत्वार्थ भष्य में सारांश है, और सच है, क्योंकि साधुओं को अपने आत्महित के लिये शरीर परसे मुच्छो त्याग करना लाभदाइ होता है, परिग्रहादि सामग्री भी विशेष रखने की आज्ञा नहीं है, मिथ्या वचन का तो निरंतर प्रतिबंध होता है। इस के अतिरिक्त बलात्कार से लिया हुवा मकान में या मालीक मकान की आज्ञा बिना पंच महाव्रत धारी गण उस आवास में निवास नही कर सक्ते, स्त्रियादि के परिचय वाले घरमें भी; साधु नही ठहर सक्ते, गृहस्थ आदिको रात्रि में दीवारोशनी, की सहायता से पाठ देना या स्वयं अध्ययन करना मना है, त्रियों के साथ प्रतिक्रमण करने की भी आज्ञा सूत्रकार भगवन की नहीं है । इतनी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 15 16 17 18