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शब्दही इतनी महत्वता वाला है, कि सुनते ही भव्यात्मा को प्रेम उत्पन्न हो जाता है. और साध, यति निग्रन्थ. मुनि. संयमि, संत आदि एकार्थी पर्यय वाचक शब्द हैं, और एसेही क्रिया पात्रों को आज्ञा पालन करने में शंका नही होती, बाकी यूं तो साधु संज्ञाके आचार पांच प्रकार बताये हैं. उनका विवरण प्रसंगोपात करना हितकर है।
प्रथम पुलाक, द्वितीय निग्रन्थ, वतिय स्नातक, चतुर्थ बकुश, और पंचम कुशील, इन पांच प्रकार के साधुओं में प्रथम, द्वितीय, और ऋतिय, प्रकार के साधु तो इस कालमें इधर होते ही नही हैं, अब रहे दो भेद, बकुश, और कुशील, यह दोनों, शासनमें विद्यमान रहेंगे । और इनही में से शासन रक्षक, और धुरंधर पंडित होंगे. इन दो प्रकार के साधुओं में से वकुश के लिये तत्वार्थ भाष्यकार श्रीमान् उमास्वाति वाचकजी महाराज क्या लिखते हैं देखिये
प्रमाण ७
" बकुशो द्विविधः- उपकरणवकुशः शरीरबकुशश्च, तत्रोपकरणाभिष्वक्तचित्तो विविधविचित्रमहाधनोपकरणपरिग्रहयुक्तो बहुविशेषोपकरणाकांक्षायुक्तो नित्यं तत्पतिसंस्कारसेवी भिक्षुरुपकरणबकुशो भवति, शरीरभिष्वक्तचित्तो विभूषार्थ तत्प्रतिसंस्कारसेवी शरीरबकुशः।
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