Book Title: Vastravarnasiddhi
Author(s): Chandanmal Nagori
Publisher: Sadgun Prasarak Mitra Mandal

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Page 10
________________ [४] उपयोग हीन बनते हैं और वह अपने पद से च्युत होजाते हैं. और होना ही चाहिये. क्योंकि मद, अहंता, अभिमान, यह एसा भाव है कि जब मनुष्य के शरीरमें उत्पन्न होता है तब वह अपने उच्च पद से भ्रष्ट होकर निकृष्ट स्थान की स्थिति पैदा करता है । सच है कार्य के साथ उसका फल, प्रयत्न के साथ में परिणाम, आघात के सामने प्रत्याघात, और भावना के सामने उसका बदला सामने ही खडा होता है । अतएव इन उपरोक्त दोषों से दूषित न बनकर विचार क्षेत्रमें प्रवेश किया जाय तो विशेष हितकर है। इतनी दीर्घ और मन-मोहक भूमिका लिखने का यही हेतु है कि विचार ही मनुष्य के अधोगति व उर्ध्वगति लेजाने में सहायक है। अतएव क्षुद्रात्मा को कहीं एसा भाव उत्पन्न न होजायं, कि मेरा ही मंतव्य प्रमाणिक और ठीक है अन्य का नहीं ! अस्तु. निवेदक, चंदनमल नागोरी, सु. छोटी सादडी (मेवाड) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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