Book Title: Vasnunandi Shravakachar
Author(s): Sunilsagar, Bhagchandra Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 2
________________ वसुनन्दि-श्रावकाचार आचार्य वसुनन्दि ने अपने इस प्रस्तुत ग्रन्थ का नाम 'उपासकाध्ययन' दिया है, पर सर्वसाधारण में यह 'वसुनन्दि- श्रावकाचार' के नाम से प्रसिद्ध है। उपासक अर्थात् श्रावक के अध्ययन अर्थात् आचार का विचार जिसमें किया गया हो उसे उपासकाध्ययन कहते हैं। द्वादशांगश्रुत के भीतर उपासकाध्ययन नामक सातवाँ अंग माना गया है, जिसमें श्रावक के सम्पूर्ण आचार का वर्णन है । ग्रन्थकार के समय से पूर्व ही इस अंग का विच्छेद हो गया था किन्तु परम्परागत ज्ञान प्राप्त कर इस ग्रन्थ की रचना की गई। यद्यपि इस ग्रन्थ में ग्यारह प्रतिमाओं के साथ-साथ प्रायः श्रावक के सभी कर्त्तव्यों का वर्णन किया गया है, तथापि सात व्यसनों का और उनके सेवन से प्राप्त होने वाले चतुर्गति सम्बन्धी महादुःखों का जिस प्रकार खूब विस्तार के साथ वर्णन किया गया है, उसी प्रकार से दान देने योग्य पात्र, दातार, देय वस्तु, दान के भेद और फल का, पंचमी, रोहिणी, अश्विनी आदि व्रत-विधानों का, पूजन के छह भेदों का और बिम्ब-प्रतिष्ठा का भी विस्तृत वर्णन किया गया है। ग्रन्थ में कुल गाथायें ५४६ हैं। भाषा सौरसेनी (प्राकृत) है, जो कि प्रायः सभी दिगम्बर जैनाचार्यों ने अपनाई । ग्रन्थ सरस, सरल एवं प्रामाणिक है।

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