Book Title: Upmiti Bhav Prapanch Katha Part 02 Author(s): Publisher: View full book textPage 3
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir પૂe उपमितिभवप्रपञ्चा कथा / य एषोऽलिकुलच्छाय: केशपाशो मनोहरः / योषितां तत्तमो हादै प्रकाशमिति चिन्तय // यौ काञ्चनमहाकुम्भविभ्रमौ ते हृदि स्थितौ / स्त्रौस्तनौ मूढ बुध्यस्व तौ स्थूलो मांसपिण्डकौ // यल्लासयति ते चित्तं ललितं दोलतादयम् / ततचर्मावृतं दीधैं तदस्थियुगलं चलम् // अशोक पल्लवाकारौ यौ करौ ते मनोहरौ / तावस्थिघटितौ विद्धि चर्मनद्धौ करङ्ककौ // यट्रञ्जयति ते चित्तं वलित्रयविराजितम् / उदरं मूढ तद्विष्ठामूत्रान्त्रमलपूरितम् // यदाक्षिपति ते स्वान्तं श्रोणौविम्बं विशालकम् / प्रभूताशुचिनिर्वाहद्वारमेतद्विभाव्यताम् // यौ मूढाटकस्तम्भसन्निभौ परिकल्पितौ / तावरू पूरितौ विद्धि वसामज्जाशचेनलौ // सञ्चारिरक्तराजीवबन्धुरं भाति यच्च ते / तदंघ्रियुगलं स्नायुबद्धास्थ्यां पञ्जरदयम् // यत्ते कर्णामृतं भाति मन्मनोलापजल्पितम् / तन्मारणात्मकं मूढ विषं हालाहलं तव // शुक्रशोणितमंभूतं नवच्छिद्रं मलोल्बणम् / अस्थिश्रङ्खलिकामात्रं हन्त योषिच्छरौरकम् // न चास्माभिद्यते जीव तावकीनं शरीरकम् / कश्चैवं ज्ञाततत्त्वोऽपि कुर्यात्कङ्कालमौलकम् // For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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