Book Title: Upmiti Bhav Prapanch Katha Part 02
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Page 10
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चतुर्थः प्रस्तावः। 55 अथ वा। विमुकदक्षिण किं सानिलाघवकारणम् / कार्यभारं महान्तं निजखामिनो थान्यनिष्पन्नमेते विमुच्याधुना / पश्य माम खदेशेषु दुःसेवकाः शीतभौताः स्वभार्याकुचोभाशया // ये दरिद्रा जराजौर्णदेहाश्च ये वातला ये च पान्था विना कन्थया / भोः कदा शीतकालोऽपगच्छेदयं माम जल्पन्ति ते भौतनिर्वेदिताः // यावमश्वादिभक्ष्याय लोलयते भूरिलोकं तुषारं तु दोदूयते / दुर्गतापत्यवृन्दं तु रोरूयते जम्बुकः केवलं माम कोकूयते // वहन्ति यन्त्राणि महेचुपौडने हिमेन शौता च तडागसन्ततिः / जनो महामोहमहत्तमाज्ञया तथापि तां धर्मधियावगाहते // अयं हि वञ्चितप्रायो वर्तते शिशिरोऽधना / ततः षण्मासमात्रेऽपि किमु चस्यति मामकः // गम्यतां भवचक्रोऽतो ममानुग्रहकाम्यया। 74 For Private and Personal Use Only

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