Book Title: Upmiti Bhav Prapanch Katha Part 02
Author(s): 
Publisher: 

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपमितिभवप्रपञ्चा कथा / तहत्तमन्त्रसेव्यश्च तत्कोशपरिवर्धकः // तदादेशकरो नित्यं तथापि गुरुपौरुषः / नूनं तं पालयत्येष राजकार्य यथेच्छया / तेनेष लौकिकी वाचो युक्रिमाश्रित्य पण्डितैः / महासननिविष्टोऽपि ऊो राजा निगद्यते // नानयोभिद्यते तात तस्माद्भेदः परस्परम् / यस्मादेकमिदं राज्यमेतत्तुभ्यं निवेदितम् // प्रकर्षः प्राह मे माम विनष्टः संशयोऽधुना / अथ वा त्वयि पार्श्वस्थ कुतः मन्देहसम्भवः / तदेवविधसज्जल्पकल्पनापगतश्रमौ / तौ विलय दिनर्मागें भवचक्रे परागतौ // दूतच परिपाच्यैव शिशिरो लवितस्तदा / संप्राप्तश्च जनोन्मादी वसन्तो मन्मथप्रियः // स ताभ्यां नगरासन्ने भ्रमनुद्दामलीलया / वसन्तः काननेषूच्चैः कीदृशः प्रविलोकितः // यदुत / नृत्यचिव दक्षिणपवनवगोवेल्लमानकोमललताबाहुदण्डैयन्निव नानाविहङ्गकलकलकलविरुतैर्महाराजाधिराजप्रियवयस्यकमकरकेतनस्य राज्याभिषेके जयजयशब्दमिव कुर्वाणो मत्तकलकोकिलाकुलकोलाहलकण्ठकूजितैस्तर्जयन्निव विलममानवरचतककलिकातर्जनौभिराकारयचिव रक्ताशोककिसलयदलललिततरलकरविलमितैः प्रणमन्निव मलयमारुतान्दोलितनमच्छिखरमहातरूत्तमाङ्गहसचिव नवविकसितकुसुमनिकराट्टहासै रुदबिव वटितन्त For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 ... 599