Book Title: Upmiti Bhav Prapanch Katha Part 02
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Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपमितिमवप्रपञ्चा कथा। मामेन परतो यत्ते रोचते तत्करिष्यते / अनिवर्तकनिर्बन्धमेवं विज्ञाय भावतः / ततस्तदनुरोधेन विमर्शो गन्तुमुद्यतः // अथ मिथ्या[भिनिवेशादिस्यन्दनवातसुन्दरम् / ममत्वादिगजस्तोमगलगर्जितबन्धुरम // अज्ञानादिमहाश्वौयषारवमनोहरम् / . दैन्यचापललौल्यादिपादातपरिपूरितम् // महामोहनरेन्द्रस्य चतुरङ्ग महाबलम् / अपमृत्य ततः स्थानात्ताभ्यां सर्वं विलोकितम् // ततो निर्णेतमार्गण दृष्टौ स्वस्रीयमातुलौ / गच्छतस्तत्पुरं वर्णमविच्छिन्नप्रयाणकैः // . मात्मिारणकामेन मातखं प्रति भाषितम् / ततः प्रकर्षसंज्ञेन तदेवं पथि गच्छता // माम यः श्रूयते लोके सार्वभौमो महीपतिः / म कर्मपरिणामाख्यः प्रतापाक्रान्तराजकः // तस्य सम्बन्धिनौमाज्ञां महामोहनराधिपः / किमेष कुरुते किं वा नेति मे संशयोऽधना // विमर्श: प्राह नैवास्ति भद्र भेदः परस्परम् / अनयोः परमार्थन स हि ज्येष्ठः सहोदरः // अयं पुनः कनिष्ठोऽस्या महाटव्यां व्यवस्थितः / यतोऽयं चरटप्रायो महामोहनराधिपः / / ये दृष्टाः केचिदस्याग्रे भवताच महीभुजः / For Private and Personal Use Only

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