Book Title: Upmiti Bhav Prapanch Katha Part 02
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org www.kobatirth.org Acharya Shri Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चतुर्थः प्रस्तावः / 587 समस्ता अपि विज्ञेयास्ते तस्यापि पदातयः // केवलं / म कर्मपरिणामाख्यः सुन्दराणौतराणि च / कार्याणि कुरुते लोके प्रकृत्या सर्वदेहिनाम् // अयं तु सर्वलोकानां महामोहनरेश्वरः / करोत्यसुन्दराण्येव कार्याणि ननु सर्वदा // अन्यच्च / अयं जिगीषु पालः स राजा नाटकप्रियः / एते भूषा निषेवन्ते महामोहमतः सदा // किं तु लोके महाराजो यतोऽस्यापि महत्तमः / म कर्मपरिणामाख्यो भ्रातेति परिकीर्तितः // तस्मादेते महीपालास्तस्यापि पुरतः सदा / गत्वा गत्वा प्रकुर्वन्ति नाटकं हर्षद्धये // भवन्ति गायनाः केचित्कचिदातोद्यवादकाः / वादित्ररूपतामेव भजन्ते भक्तितोऽपरे // किं बड़ना। महामोहनरेन्द्राद्याः सर्वेऽमी तात भूभुजः / सर्वथा हेतुतां यान्ति तत्र संसारनाटके // स तावन्माचसंतुष्टः सपत्नीको नराधिपः / तदेव नाटकं पश्यन्नित्यमास्ते निराकुलः // अन्यच्च / एतेषां तावदस्येव सर्वेषां म प्रभुनृपः / For Private and Personal Use Only

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