Book Title: Updeshpad Mahagranth Satik Part 01
Author(s): Jinendrasuri, 
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 4
________________ प्रदेश द ला मुनि महात्माओ पण आगमथी पण विशेष बोध पामवाना सरल सूक्ष्म संयोग रूप आ उपदेशपद महा ग्रन्थने न वांचे न विचारे न समजेन सद्हे अने न आचरे त्यां सुधी उणप रहेशे एम कहीए तो पण खोटं नथी. आवा महान ग्रन्थ उपर महान आचार्य पू. श्री मुनिचन्द्र सूरीश्वरजी महाराजे टीका रचीने सोनेरी कांगरा चढाव्या छे. प्रसंगानुरूप प्राकृतमां प्रसंगो कथाओ मूकीने महान ग्रन्थने सरलता समजवा समजाववा भगिरथ ? प्रयत्न कर्यो छे ते माटे ग्रन्थकार साथे तेओश्रीने पण नमस्कार करी धन्यता अनुभवीए. आ ग्रन्थनेो खूब खूब स्वाध्याय वाचन मनन विगेरे थाय अने जैन शासनने समजी पामी सौ जीवो सम्यक्त्वादि गुणो पामी मोक्ष सुखना अर्थी बने एज अभिलाषा. २०४५ भादरवा वद-१० ओशवाल यात्रिक गृह. पालीताणा 5 - जिनेन्द्रसूरि सटीक : ॥४॥

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