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C संज्ञायाली प्रति मारा परमोपकारी तारक गुरुमहाराज आगमोद्धारक आचार्य महाराज श्री आनन्दसागरसूरीश्वरजी संग्रहितशास्त्रभंडार जैनानन्द पुस्तकालय गोपीपुरा सुरतनी छे. १९६३ नी सालमां लखाएली छे. लहीयाए शाही वापरवामां बेदरकारी करेली होवाथी पानाओ केटलाक परस्पर चोंटी गया छे. अक्षरो पाछल फुटेला होवाथी वांची शकाता नथी केटलोक सारो भाग अशुद्धि मेलववा माटे उपयोगी थयेल छे. ताडप्रतिने अनुरुप लखाण छे, छतां प्रशस्ति नथी.
D. संज्ञावाली हस्तप्रति प. पू. आ. म. श्री विजयनेमिसूरीश्वरजी म. ना खंभातना भंडारनी छे पू. आ म. श्री विजयोदयसूरिजी म. तथा पू आ. म. श्री विजयनन्दनसूरिजी म. द्वारा प्रतिप्राप्ति थइ हती. ' वि सं. १५८६ वर्षे पोष १३ दिने वृत्तिर्लिखिता ।' आ प्रतिनो फोटो D संज्ञा तरीके छपावेल छे. साइझ ११४४ ।। इंच २०६ प्रतिपत्रे १५ पंक्तिओ प्रति पंक्तिमां ६० थी ७० अक्षरो, स्थिति घणी जीर्ण. केटलीक जगोपर कालाश अने पत्रो पण खंडित थइ गया छे. लिपी सारी अने शुद्ध छे.
चार प्रतिओ पैकी प्रशस्ति A संज्ञित ताडप्रतिमां छे B मां मात्र अढी श्लोकज छे. C D मां प्रशस्ति छे ज नहिं. बीजी हस्तप्रतिओ न मलवाथी केटलाक स्थलो शंकित रहेला छे. जुनी लीपीमां व. ब. च. ओलखवा मुश्केल पडे छे तेमज त्थ. च्छ. ज्झ. जेवा बीजा अक्षरो प्रकरणना अनुसारे बेसाडी शकाय छे. शंकितस्थलो परिमार्जन करवा योग्य छे.
आ उपदेशमाला उपर अनेक टीकाओ पैकी अत्यार सुधीमां बे टीकाओ मुद्रित थयेली छे एक सिद्धर्षिनी, बीजी रामविजयजीनी. त्रीजी आचार्य श्री रत्नप्रभसूरिए रचेली अनेक संस्कृत - प्राकृत अपभ्रंश भाषामय कथानकोथी विभूषित जे माटे विद्वान् उपक्रमकारे सुन्दर स्पष्टता करेली छे. आ टीकानुं महत्त्व अनोखुं छे. कथाना अर्थी माटे व्याख्यान उपयोगी आ ग्रन्थ वैराग्यनुं सुंदर पोषण करनार छे. आमां घणेभागे साधुधर्मोपदेश, कोइक जगो पर गृहस्थधर्मोपदेश, कोईक जगो पर उभय साधारण धर्मोपदेश कहेल छे.
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