Book Title: Updeshmala
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 19
________________ उपक्रमः। Docpomec CCCCCCCCCCCC0 श्रीसीमन्धरजिनविज्ञप्तिस्तव (१२५ गाथा) गतोपदेशगाथोद्धारः। ढा० गा० ढा० गा० १ जेह राखे पर० ४ ११ जइयाऽणेण चत्तं० ४३४ ८ ते पण मारग मांहे० ७ १ संविग-पक्खियाणं० ५१४ २ नाणरहित हितपरिहरी० ६ ९ गुणहीणो गुण० ३५१ ९ मृषावाद भवकारण० ६ १ सुद्धं सुसाहुधम्म० ५१५ ३ सूत्रविरुद्ध जे आचरे०६११ जो जहवायं ण कुणइ० ५०४ १० वंदे नवि वंदावे० ७ १ वंदइणय० ५१६ ओसण्णो० ५१७ ४ पामरजन पण० ६ १२ लोएऽवि जो ससूगो० ५०८ ५ निर्दय हृदय छकायमां० ६ १३ छज्जीवणिकायदया० ४३० ११ आप हीनता जे मुनि भाखे० ७ २ आयरतरसंमाणं० ५२४ ६ साधु भगति जिनपूजना०६१४ अरिहंत-चेइआणं० ५०२ १२ प्रथम साधु बीजो० ७३ सावज-जोगपरिवज. ५१९ ७ जे मुनिवेष शके नहि० ७ १ जइ ण तरसि० ५०१ | १३ शेष त्रणभव मारग० ७३ सेसा मिच्छादिदि० ५२० श्रीसीमन्धरजिन-वृद्धविज्ञप्ति (३५० गा.) स्तवनगतोपदेशमालागाथोद्धारः। ढा. गा० ढा० गा० १ अज्ञानी नवि० १ ११ जं जयइ अगीयत्थो० ३९८, ५ पायच्छित्तादिक भाव० २ १५ जो चयइ उत्तरगुणे० ११७ | २ जिम २ बहुश्रुत बहुजन १ १४ जह २ बहुस्सुओ० ३२३ | ६ द्रव्यक्षेत्र ने काल० ६२ दव्वं खित्तं कालं० ४०० ३ पामी बोध न पाले० १ २३ लद्धिल्लियं च बोहिं० २९३ ७ सचित्त अचित्त मिश्र० ६३ जहठिय दव्वं ण. ४०१ ४ जे निरगुण गुणरत्नाकर० २ १० गुणहीणो गुण० ३५१ / ८ क्षेत्र न जाणे तेह० ६ ४ जहठिय खित्तं ण० ४०२ onomone २३॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 ... 574