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मारामां आवा महान ग्रन्थो संशोधन करवानी शक्ति न होवा छतां मारा महोपकारि तरणतारण गुरुवर्य आगमोद्धारक शिला - ताम्रपत्रारुढ आगमकारक श्री सिद्धक्षेत्र तलेटिमां आगममंदिरस्थापक, सूर्यपुर (सुरत) बंदरे ताम्रपत्र आगम मंदिर निर्मापक आचार्य महाराज श्री आनन्दसागरसूरीश्वरजीना शुभ प्रेरणाबलना योगे संपादननु आ प्रथम कार्य करेल छे. आधुनिक संशोधनपद्धतिनी अपेक्षाए आ संपादनमा घणी त्रुटीओ रहेवा पामी छे, परंतु महापुरुषोनुं कथन छे के ' शुभे यथाशक्ति यतनीयं ' ए नियमानुसार में आ प्रयत्न कर्यो छे. वाचकवृन्द हंसदृष्टि राखी त्रुटिओ मने लखी जणावशे तो हुं भवि मां तेनुं परिमार्जन करीश आ ग्रन्थ घणा वर्षो पहेलां छपाइ गयो हते, परन्तु सिन्धिग्रन्थमालामां ' छपाय छे' तेवी जाहेरात वांचवाथी ए कार्य शरु करेल नहि. तपास करतां मालम पड्युं के छपातो नथी. त्यारबाद प्रेसकोपी तैयार करावी यथाशक्य शुद्ध करी वाचकवृन्दना करकमलमां मुकवा आजे प्रयत्न सफल थयो छे. आ ग्रन्थ संबन्धि उपक्रमना विद्वान् लेखक महाशये विद्वत्तापूर्ण अने घणा प्रन्थोना अवलोकन आधार लइ विस्तृत निबंध लखेल छे. ते प्रथम वांचवा माटे सहुनु ध्यान खेचुं छं. आ ग्रन्थ संपादन करवामां हस्तलिखित प्रतिओ आपनार, उपक्रमणिका लखी आपनार, आर्थिक-मानसिक - कायिक प्रत्यक्ष-परोक्ष के अन्य प्रकारे श्रुतज्ञाननी भक्तिमां सहकार आपनार दरेकने अभिनन्दन आपी आवा अपूर्व वैराग्यपूर्ण प्रन्थकारना उपदेशनो आस्वाद पामी दरेक आत्मा परमगतिने पामो एज मात्र अन्तिम आकांक्षा ।
वि. सं. २०१४ भाद्रशुक्र १३ गुरु शान्ताक्रुझ, मुंबइ ता. २५-९-५८
ली. आगमोद्धारक आचार्य महाराज श्री आनन्दसागरसूरीश्वर विनेयाणु, आ. हेमसागरसूरि.
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