Book Title: Upasakdashanga aur uska Shravakachar
Author(s): Subhash Kothari
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 215
________________ २०२ (च) कला और विज्ञान लेखन - उपासकदशांगसूत्र में लेखन कला के संकेत भी प्राप्त होते हैं । मृषावाद के पाँच अतिचारों में कूटलेखकरण को पांचवां अतिचार माना है ।" इसके अतिरिक्त लेखन के सम्बन्ध में उपासकदशांगसूत्र में कोई संकेत नहीं है । अन्य आगम ग्रन्थों में लेख, लेखन सामग्री आदि का उल्लेख प्राप्त होता है । उपासकदशांग : एक परिशीलन अर्धमागधी भाषा - उपासक दशांगसूत्र में कहा गया है कि भगवान् महावीर द्वारा उद्गीर्ण अर्धमागधी भाषा उन सभी आर्य और अनार्यों की भाषा में परिणत हो गई । ३ बर्तन - सकडालपुत्र बर्तन बनाने और बर्तन बेचने का व्यापार करता था । वह तरह-तरह के करवे, गडुए, अर्धघटक, कलसे, सुराहियां, लम्बी गर्दन वाले घड़े बनवाता था । आनन्द ने पानी के लिए ऊंट के आकार के घड़े का परिमाण किया । इस प्रकार उस काल में विभिन्न प्रकार के बर्तन काम में लाये जाते थे । शिल्प - कोल्लाक सन्निवेश के राजमार्ग, अट्टालिकाओं, आश्रयस्थानों, नगरद्वारों एवं तोरणद्वारों से सुशोभित थे । उसकी अर्गला और गोपुर के किवाड़ों के आगे जुड़े हुए नुकोले भाले जैसो कोलें सुयोग्य शिल्पाचार्यों द्वारा निर्मित थीं । कोल्लाक सन्निवेश के हाट-मार्ग, व्यापारक्षेत्र, बाजार आदि 'बहुत से शिल्पियों ओर कारोगरों से आवासित होने के कारण सुखसुविधापूर्ण थे । १. उवासगदसाओ मुनि मधुकर, ११४६ २. जैन, जगदीशचन्द्र - जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज, पृष्ठ ३०० ३. उवासगदसाओ - मुनि मधुकर, १ / ११ ४. वही, ५. वही, ६. वही, ७. वही, Jain Education International - ७/१८४ १/२७ १/७ १/७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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