Book Title: Upasakdashanga aur uska Shravakachar
Author(s): Subhash Kothari
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 241
________________ २२८ उपासकदशांग : एक परिशीलन महागोवे :७/२१८ = महागोप-यह महावीर के विशेषण के रूप में प्रयुक्त हुआ है जैसे ग्वाला गायों की देखभाल व सुरक्षा करता है, वैसे ही महावीर लोक कल्याण व जन-जन की सुरक्षा हेतु उपदेश देते थे। महाधम्मकही : ७/२१८ = महाधर्मकथी = महावीर का विशेषण । संसार चक्र में भटकते हुए व्यक्तियों की विविध दृष्टान्तों व आख्यानों के माध्यम से धर्म का सार बताने के कारण महावीर को महा धर्मकथो कहा है। महानिज्जामए : ७/२१८ = महानिर्यामक-महावीर का एक विशेषण । निर्यामक का अर्थ है पार उतारने वाला। महावीर संसाररूपी समुद्र में डूब रहे व्यक्तियों को धर्मरूपी नौका से पार उतारते हैं, अतः महावीर महानिर्यामक थे। महामाहण : ७/१८७ = महामाहण-शाब्दिक दृष्टि से 'महा' का अर्थ महान से है व 'माहन' का अर्थ ब्राह्मण से है। ऐसा भी कहा जा सकता है कि "मैं किसी को नहीं मारूं" और तदनुरूप वह किसी को नहीं मारता है और जनता को भी नहीं मारने का उपदेश देता है, ऐसा व्यक्ति माहण व महान् अर्थात् महामाहण कहलाता है। महासत्थवाह : ७/२१८ = महासार्थवाह-महावीर का विशेषण। दूर-दूर तक लम्बी-लम्बी यात्रायें करने व कराने वाले संचालक को सार्थवाह कहा जाता है। मेढी : १/५ = मेढी-'मेदी' शब्द लकड़ी के उस खम्भे से है जिसे खेतों के बीचोंबीच गाड़कर उससे बैलों को बांधकर अनाज निकालने के लिए उन्हें घुमाया जाता है, उसी के सहारे बैल गतिशील रहते हैं । आनन्द भी मेढी के समान केन्द्र-बिन्दु की तरह घर में रहता था। रयणप्पभा : १/७४ = रत्नप्रभा-अधोलोक की प्रथम नरक का नाम । इसमें नारकीय जीव निवास करते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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