Book Title: Upasakdashanga aur uska Shravakachar
Author(s): Subhash Kothari
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 222
________________ उपासकदशांग में वर्णित समाज एवं संस्कृति २०९ (ग) विनिमय आर्थिक लेन-देन को विनिमय कहा जाता है। यह उत्पादन और विभाजन तथा उत्पादन और उपभोग के बीच कड़ी का काम करता है। उपासकदशांगसूत्र में विनिमय के लिये मुद्रा के प्रयोग का उल्लेख हुआ है। ___ मुद्रा- यहाँ हिरण्य, सुवर्ण व कांस्य मुद्राओं का उल्लेख है । आनन्द के पास चार करोड़ सुवर्ण खजाने में रखा था।' महाशतक के पास आठ करोड़ कांस्य परिमित स्वर्ण मुद्राएं व्यापार के लिये थीं। अन्य आगमों में सुवर्ण, कार्षापण, मास, अर्द्धमास व रूपक का उल्लेख मिलता है । पण्णग एवं पायंक' मुद्राओं का भी चलन था। उधार-उपासकदशांगसूत्र के अनुसार उस समय उधार लेन-देन भी होता था। एक प्रसंग में कटलेखकरण का उल्लेख भी हैं। अर्थात् रुपया उधार लेते समय कूटलेख या छल कपट युक्त लेख लिख देते थे। अन्य आगमों में भी उधार के प्रसंग मिलते हैं, लोग उधार लेकर वापिस नहीं देते थे। यदि कोई उधार देने में समर्थ नहीं होता तो उनके घर के बाहर मैली-कुचैली झंडी लगा दी जाती थी। लेन-देन में छल-उधार लेते-देते समय कूट लेख तो होता ही था, किन्तु उपासकदशांगसूत्र में अस्तेयव्रत के अतिचार में कूटतुला और कुटमान का उल्लेख भी आता है। इससे मालम होता है कि उस समय नाप-तौल के लेन-देन में छल-कपट होता था।' १. उवासगदसाओ-मुनि मधुकर, १/४, २/९२, ३/११५, ४/१५० २. वही, ८/२३२ ३. सूत्रकृतांगसूत्र, २/२, पृष्ठ ३२७ ४. व्यवहारभाष्य, ३/२६७ ५. आवश्यकटीका, पृष्ठ ४३२ ६. उवासगदसाओ-मुनि मधुकर, १/४३ ७. आवश्यकटीका, पृष्ठ ८२० ८. निशीथभाष्य, ११/३७०४ ९. उवासगदसाओ - मुनि मधुकर १/४७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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