Book Title: Upasakdashanga Sutra Author(s): Abhaydevsuri, Publisher: Abhaydevsuri View full book textPage 2
________________ उपासकदशांग सानुवाद १आनंदाध्ययन ॥२॥ २. तेणं कालेणं तेणं समएणं अजसुहम्मे समोसरिए, जाव जम्बू पज्जुवासमाणे एवं वयासी-जइ णं भन्ते! समणेणं भगवया महावीरेण जाव सम्पत्तेणं छहस्स अङ्गस्स नायाधम्मकहाणं अयमढे पण्णत्ते, सत्तमस्स णं भन्ते ! अंगस्स उवासगदसाणं समणेणं जाव सम्पत्तेणं के अढे पण्णत्ते ? एवं खलु जम्बू ! समणेणं जाव सम्पत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता। तंजहा-आणन्दे १, कामदेवे य २, गाहावइ ईशान खूणामां पूर्णभद्र नामे चैत्य हतुं. ते एक मोटा वनखंड वडे चोतरफ वींटायेलुं हतुं-इत्यादि वर्णन जाणवू. ते काळे अने ते समये आर्य सुधर्मा स्वामी समोसर्या. ते सुधर्मा स्वामीना ज्येष्ठ अंतेवासी आर्य जंबू स्वामीए उपासना करता आ प्रमाणे पूछथु-हे भगवन् ! जो यावत् उत्तमार्थ-निर्वाणने प्राप्त थयेला श्रमण' भगवान् महावीरे ज्ञाताधर्मकथा नामे छटा अंगनो आ अर्थ कह्यो छे, तो उपासकदशा नामे सातमा अंगनो निर्वाणने प्राप्त थयेला श्रमण भगवान महावीरे शो अर्थ कह्यो छे ? हे जंबू ! यावत् उत्तमार्थने | दशा-दस अध्ययनरूप ते उपासकदशा कहेवाय छे. आ ग्रन्धर्नु नाम बहुवचनान्त छे. आ ग्रन्थना संबन्ध, अभिधेय-विषय अने प्रयो जन सूचना नामना अन्वर्थ-व्युत्पत्तिना सामर्थ्यथी प्रतिपादन करेला छे. ते आ प्रमाणे-उपासकोतुं अनुष्ठान अहीं अभिधेय छे, तेनुं ज्ञान थर्बु ते श्रोताओर्नु अनन्तर-तुरतर्नु प्रयोजन के अने श्रावकोना अनुष्ठाननो बोध करवो ते शास्त्रकारोनुं अनन्तर प्रयोजन छे. शास्त्रमा संबन्ध बे प्रकारनो कह्यो छ-उपायोपेय-कार्यकारणभाव अने गुरुपर्वक्रमलक्षण. तेमां कार्यकारणभाव संबन्ध शास्त्रना नामनी व्युत्पत्तिना सामर्थ्यथी कह्यो छे. जेम के आ शास्त्र कारण छे अने तेथी श्रावकोना अनुष्ठाननु शान थर्बु ते कार्य छे. गुरुपर्वलक्षण संबन्ध साक्षात् बतावता सूत्रकार कहे छे २ तेणं कालेणं तेणं समपण' इत्यादि सूत्र शाताधर्म कथाना प्रथम अध्ययनना विवरणने अनुसारे जाणवू, परन्तु 'आनन्द' इत्यादिPage Navigation
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