Book Title: Umaswami Shravakachar Pariksha Author(s): Jugalkishor Mukhtar Publisher: Veer Seva Mandir View full book textPage 5
________________ प्रस्तावना यह प्रन्थ-परीक्षा, जिसमें उमास्वामि-श्रावकाचारको एक जाली ग्रन्थ सिद्ध किया गया है, आजसे कोई इकतीस वर्ष पहले देवबन्द में ( मेरे मुख्तारकारी छोड़नेसे प्रायः तीन मास पूर्व ) लिखी गई थी, सबसे पहले जैनहितैषी भाग १० के प्रथम दो अंकों (कार्तिक व मार्गशीर्ष वीरनिर्वाण सं० २४४०) में प्रकाशित हुई थी और इमी परीक्षा-लखसे मेरी उस 'प्रन्थ-परीक्षा' लेख-मालाका प्रारम्भ हुआ था, जो कई वर्ष तक उक्त जैनहितैषी पत्र में बम्बईसे निकलती रही और बादको 'जैनजगत' में अजमेरसे भी प्रकट हुई है। इस परीक्षा-लेखका अनुमोदन करते हुए ब्रह्मचारी शीतलप्रसादजीने इस उमी समय अपने 'जैनमित्र' पत्रमें उद्धृत किया था, और दक्षिण प्रान्तकं प्रसिद्ध विद्वान् सेठ हीराचन्द नेमिचन्दजी ऑनरेरी मजिस्ट्रेट शोलापुरने इसका मराठी भापामें अनुवाद प्रकाशित कराया था। और भी कई परीक्षा-लेखोंका मराठी अनुवाद आपने प्रकाशित कराया था, और उसके द्वारा यह प्रकट किया था कि इस प्रकारके लेखोंका जितना अधिक प्रचार हो उतना ही वह ममाजके लिए हितकर है। ___इस परीक्षा-लग्चके बाद जब 'कुन्दकुन्द-श्रावकाचार' की परीक्षा का लेंग्व'जिनसेन-त्रिवर्गाचार' की परीक्षाके तीन लेव + और ___यह लेग्व ता० १७ जनवर्ग ५६१४ को देवबन्दमें लिया गया और पोप वीरनिर्वाण मंवत २४४ ० के जैनहिनैपी अंक ३ में प्रकट हुआ। ये लेग्य क्रमशः १२ जून, ८ जुलाई, १५ अगस्त सन् १९१४ को देवबन्दमें लिये गये और जनहितैषीक चैत्र-बैसाग्व, जेष्ठ तथा अमाढ़ वीरनिर्वागा मंवत् २४४० के अंकोंमें प्रकट हुए।Page Navigation
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