Book Title: Umaswami Shravakachar Pariksha
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir

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Page 28
________________ १० प्रकीर्णक-पुस्तकमाला शब्दोंमें किया है कि आजकल ये काष्ठ, लेप और लोहेकी प्रतिमायें पूजनके योग्य नहीं हैं। इसका कारण अगले श्लोकमें यह बतलाया है कि ये वस्तुयें यथोक्त नहीं मिलतीं और जीवोत्पत्ति श्रादि बहुतसे दोषोंकी संभावना रहती है । यथा :"योग्यस्तेषां यथोक्तानां लाभस्यापि त्वभावतः । जीवोत्पत्त्यादयो दोषा बहवः संभवंति च ॥ १०६॥" ग्रन्थकर्ताका यह हेतु भी विद्वजनोंके ध्यान देने योग्य है । -धर्मसंग्रहश्रावकाचारसे "माल्यधूपप्रदीपाद्यैः सचित्तैः कोऽर्चयजिनम् । सावद्यसंभवाद्वक्ति यः स एवं प्रबोध्यते ॥१३७॥ जिना नेकजन्मोत्थं किल्बिषं हन्ति या कृता । सा किन्न यजनाचारैर्भवं सावद्यमंगिनाम् ॥१३८।। प्रेर्यन्ते यत्र वातेन दन्तिनः पर्वतोपमाः। तत्राल्पशक्तितेजस्सु दंशकादिषु का कथा ॥१३॥ भुक्तं स्यात्प्राणनाशाय विषं केवलमंगिनाम् । जीवनाय मरीचादिसदौषधविमिश्रितम् ॥१४०।। तथा कुटुम्बभोग्यार्थमारंभः पापकृद्भवेत् । धर्मकृद्दानपूजादौ हिंसालेशो मतः सदा ॥१४॥ ये पाँचों पद्य पं० मेधावीकृत 'धर्मसंग्रहश्रावकाचार' के हवें अधिकारमें नम्बर ७२ से ७६ तक दर्ज हैं । वहींसे लिये हुए मालूम होते हैं। च-अन्यग्रंथोंके पद्य "नाकृत्वा प्राणिनां हिंसां मांसमुत्पद्यते कचित् । न च प्राणिवधः स्वर्ग्यस्तस्मान्मांसं विवर्जयेत् ॥२६४॥

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