Book Title: Umaswami Shravakachar Pariksha
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir

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Page 18
________________ १६ प्रकीर्णक पुस्तकमाला छपाने की जरूरत है। साथ ही, इस बातकी भी जरूरत है कि ये परीक्षाग्रंथ विद्यालयोंकी उच्चकक्षाओंके विद्यार्थियोंको पढ़नेके लिए दिए जावें, जिससे उनका ज्ञान व्यापक बन सके और वे यथेष्ट रूप में प्रगति कर सकें । ऐसा होनेपर पं० परमेष्ठीदासजी न्यायतीर्थं की विद्यासंस्थाओं पर की गई वह आपत्ति भी दूर हो सकेंगी जो उनके उक्त पत्र से प्रकट है । पाठकों को यह जानकर आश्चर्य होगा कि हालमें भट्टारकीय साहित्य के कुछ पुरस्कर्त्ताओंने उमास्वामि श्रावकाचारको भाषाटीका साथ प्रकाशित करने की धृष्टता की है। इसीसे मुनि श्री सिद्धिसागरजी महाराजने उस प्रन्थसे होनेवाले अनथको टालने तथा भाले जीवोंको चहककर अथवा मुलावेमें पड़कर मिध्यात्वकी प्रवृत्ति करनेसे रोकने के लिये, मुझे इस ग्रंथपरीक्षाको फिर से प्रकाशित करनेकी सानुरोध प्रेरणा की है। उसीके फल स्वरूप यह परीक्षा वीर सेवा मन्दिर से प्रकाशित की जा रही है। इसका अधिकांश श्रेय उक्त मुनिजीका ही प्राप्त है । प्रस्तावना लिखते समय मैं यह चाहता था कि उक्त प्रकाशित बन्धको इस दृष्टि देख लिया जाय कि उसकी भूमिकादिमें इस ग्रन्थपरीक्षाके सम्बन्ध में कुछ लिखा तो नहीं है, यदि लिखा हो तो उसका भी विचार साथ में कर दिया जाय । परन्तु खोजने पर भी यहाँ देहली में, जहाँ मैं कोई दो महीने से स्थित हूँ, उसकी कोई प्रति अपनेको नहीं मिल सकी और न लिखनेपर जयपुरसे ही वह आ सकी है। इसीसे उसके विषयका कोई खास उल्लेख इस प्रस्तावना में नहीं किया जा सका । आश्विनी मा वि० सं० २००१ जुगलकिशोर मुख्तार

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