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प्रकीर्णक-पुस्तकमाला हृदयका भी सच्चा फोटू आपने प्रगट कर दिखाया है। अपकी यह परीक्षा तथा पूर्व-लिखित ग्रन्थपरीक्षाएँ बड़ी कामकी चीजें होंगी।" __ इस प्रकार यह 'प्रन्थपरीक्षा' लेखमाला और उसके प्रभावादिकका संक्षिप्त इतिहास है। इस लेखमालाने जनताको सत्यका जो विवेक कराया है, जाली मिक्कों को परखनेके लिये परीक्षा और जाँचकी जो दृष्टि तथा कसौटी प्रदान की है, परीक्षा-प्रधा. नता और मत्य-वादिताको अपनानकी जो शिक्षा दी है, बड़े आचार्योके नामस न ठगाये जाकर वास्तविकताको मालूम करने की जो प्रेरणा की है, अन्धानुसरण कर अहिनमें प्रवृत्त होनेसे रोकनेकी जो चेष्टा की है, प्राचीन ऋषि-महषियोंकी निर्मल कीर्ति को मलिन न होने देकर उसकी सुरक्षाका जो प्रयत्न किया है, और शास्त्र-मूढ़ता अथवा अन्धश्रद्धाके वातावरणको हटाकर विचारवातंत्र्य एवं सुनिीतके ग्रहणको जो प्रोत्तेजन दिया है, वह सब इस लेखमालाक लेग्यों को पढ़नेस ही सम्बन्ध रखता है. और उससे लग्बमालाका उद्देश्य भी स्पष्ट हो जाता है। ____ अब मैं इतना और भी प्रकट कर देना चाहता हूं कि इस प्रन्थपरीक्षाके कार्यमें मेरी प्रवृत्ति कैसे हुई , मेरे हृदयमें गृहस्थ धर्मपर 'गृहि-धर्मानुशासन' नामसे एक सर्वाङ्गपूर्ण ग्रन्थ लिखनेका विचार उत्पन्न हुआ. जो गृहस्थ-धर्म-सम्बन्धी अपटु-डेट सब बातोंका उत्तर दे सके और जिसकी मौजूदगीमें बहुतस श्रावकाचार्गाद ग्रन्थोंस विषयक अनुसन्धान आदि की जरूरत न रहे । इसके लिये प्राचार-विषयक सभी प्राचीन ग्रन्थोंको देखलन की जरूरत पड़ी, जिससे कोई बात अन्यथा अथवा अगमक विरुद्ध न लिखी जा सके। ग्रन्थ-सूचियों में उमास्वामि-श्रावकाचार और कुन्दकुन्द-श्रावकाचार जैसे ग्रन्थोंका नाम मिलनेपर सबसे पहले उन्हींको मँगाकर देखनकी ओर