Book Title: Umaswami Shravakachar Pariksha
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir

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Page 25
________________ उमास्वामि-श्रावकाचार-परीक्षा जिनसे वे पद्य-रत्न लेकर इस ग्रन्थमें गॅथ गये हैं। उन पद्यों से कुछ पद्य, नमूनेके तौरपर, यहाँ पाठकोंके अवलोकनार्थ प्रकट किये जाते हैं:(१) ज्योंके त्यों उठाकर रक्खे हुए पद्य क-पुरुषार्थसिद्धय पायसे "आत्मा प्रभाषनीयो रत्नत्रयतेजसा सततमेव । दानतपोजिनपूजाविद्यातिशयैश्च जिनधर्मः ॥६॥ ग्रंथार्थोभयपूर्ण काले विनयेन सोपधानं च । बहुमानेन समन्वितमनिहवं ज्ञानमाराव्यम् ॥२४॥ संग्रहमुच्चस्थानं पादोदकमर्चनं प्रणामं च।। वाकायमनःशुद्धिरेषणशुद्धिश्च विधिमाहुः ॥४३७॥ ऐहिकफलानपेक्षा क्षान्तिनिष्कपटतानसूयत्वं । अविषादित्वमुदित्वे निरहंकारत्वमिति हि दातगुणाः ॥४३८॥ ये चारों पद्य श्रीअमृतचंद्राचार्य-विरचित 'पुरुषार्थसिद्धय पायसे' उठाकर रक्खे गये हैं। इनकी टकसाल ही अलग है; ये 'आर्या' छंदमें हैं। समस्त पुरुषार्थसिद्धय पाय इसी आर्याछंदमें लिखा गया है। पुरुषार्थसिद्धय पायमें इन पद्योंके नम्बर क्रमशः ३०, ३६, १६८ और १६६ दर्ज हैं। ख-यशस्तिलकसे “यदेवाङ्गमशुद्धं स्यादद्भिः शोभ्यं तदेव हि । भंगुलौ सर्पदष्टायां न हि नासा निकृत्यते ॥४॥ संगे कापालिकात्रेयीचांडालशवरादिभिः । आप्लुत्य दंडवत्सम्यग्जपेन्मंत्रमुपोषितः ॥ ४६॥ एकरात्रं त्रिरात्रं वा कृत्वा स्नात्वा चतुर्थके। दिने शुभ्यन्त्यसंदेहमृतौ व्रतगताः खियः ॥४७॥

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