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प्रस्तावना
प्रवत्ति हुई। और उन्हें देखते हुए जब यह मालूम पड़ा कि ये ग्रन्थ जाली हैं-कुछ धूर्तीने अपना उल्लू सीधा करनेके लिए बड़े आचार्योंके नामपर उन्हें ग्चा है; तब मुझसे न रहा गया और मैं लोकहितकी दृष्टिसे परीक्षाद्वारा उन अन्थोंकी असलियतको सर्वसाधारणपर प्रकट करनेके लिये उद्यत होगया । बादको जिनसेन-त्रिवर्णाचार, मोमसेन-त्रिवर्णाचार और भद्रबाहु-संहिता जैसे और भी कितने ही जाली तथा अर्ध जाली प्रन्थ सामने आते रहे और उनकी परीक्षाके लिये विवश होना पड़ा। प्रमन्नताका विषय है कि मुझे इस काममें अच्छो सफलताकी प्राप्ति हुई है और मेरे इस कार्यने एक प्रकारसे विद्वानोंकी विचार-धागको ही बदल दिया है। वे इस प्रकारके माहित्यसे अब बहुत कुछ सावधान हो गये हैं और तुलनात्मक-पद्धतिसे अध्ययनमें रुचि भी रखने लगे हैं। अस्तु । ___ अभी कितने ही ग्रन्थ दिगम्बर तथा श्वेताम्बर दोनों ही सम्प्रदायोंके शास्त्र भण्डारों में ऐसे पड़े हुए हैं जो जाली हैं. जैनत्वसे गिरे हुए हैं और जिनका असली रूप परोक्षा-द्रारा सर्वसाधारणपर प्रकट करना समाजके लिए हितकर है। अभी भी ऐसे कई ग्रन्थोंकी परीक्षाकं लिये मुझे प्रेरणा की जा रही है, परन्तु मेरे पास जरा भा अवकाश नहीं, इसलिये मजबर हो रहा हूँ। इस कार्यके लिये दूसर अनेक विद्वानोंक आगे आने की जरूरत है, और तभी वह मुसम्पन्न हो सकेगा। । अन्त में मैं इतना और भी निवेदन कर देना चाहता हूँ कि ग्रंथपरीक्षाके प्रथम तीन भाग समाप्त हो चुके हैं, मिलते नहीं । अनेक सजन इधर उधर तलाश करने पर भी जब उन्हें नहीं पाते तब मुझे लिखते हैं और मैं भी उन्हें भेजने तथा भिजवाने में प्रायः असमर्थ रहता हूँ। अतः कुछ समाज हितैपियोंको उन्हें फिर से