Book Title: Tulsi Prajna 2000 04
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 6
________________ पार्श्व स्तुति संदोह तुलसी प्रज्ञा का अभिनव विशेषांक भगवान पार्श्वनाथ श्रमण परम्परा के तेईसवें तीर्थंकर हैं। उनकी जितनी स्तुतियाँ, स्तवनाएँ उपलब्ध हैं, अन्य तीर्थंकरों की नहीं। तुलसी प्रज्ञा' का यह अंक भगवान पार्श्व की स्तुतियों, स्तवनाओं, स्तोत्रों, दोहों, श्लोकों एवं गीतिकाओं का अनूठा संकलन है। संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी और लोक भाषा में निबद्ध यह 'पार्श्व स्तुति संदोह' स्तुति साहित्य की परंपरा का एक पुरुषार्थी प्रयत्न कहा जा सकता है। पार्श्व स्तुतियों का एक साथ इतना बड़ा संकलन-संयोजन अन्यत्र देखने में नहीं आया। इस दृष्टि से 'तुलसी प्रज्ञा' का यह विशिष्ट विशेषांक हर जैन परिवार, संस्थान, मन्दिर एवं पुस्तकालयों के लिए संग्रहणीय है। अत: पत्रिका के सदस्य पाठकों के अतिरिक्त इस पुस्तक को सब तक पहुँचाने की व्यवस्था की गई है। इस अंक को प्राप्त किया और कराया जा सकता है - • तुलसी प्रज्ञा के आजीवन सदस्य बनकर। अपने अर्थ सौजन्य से निर्णीत विद्वानों को भेजने की व्यवस्था कर। पर्वो, त्यौहारों, उत्सवों, जन्म-विवाह तथा अन्य महत्वपूर्ण धार्मिक आयोजनों में भेंटस्वरूप देकर। 'पार्श्वनाथ स्तुति संदोह' आप अवश्य पढ़ें एवं सबको पढ़ने की प्रेरणा दें। एक प्रति मूल्य 100/- रुपये मात्र, पचास पुस्तकों से ज्यादा मँगवाने पर 40 प्रतिशत की छूट, पत्रिका की आजीवन सदस्यता 1500/- रुपये। सम्पादक विनम्र निवेदन जैन विश्वभारती संस्थान द्वारा प्रकाशित त्रैमासिकी शोध पत्रिका 'तुलसी प्रज्ञा' का यह 109वाँ अंक आपके हाथों में है। यह गौरव की बात है कि इस शोध-पत्रिका ने जैनधर्म, दर्शन, कला साहित्य, शोध, साधना और संस्कृति से जुड़कर अन्य धर्म, दर्शन तथा चिन्तन को भी समन्वयात्मक रूप से सदा स्वीकारा है । सुधि लेखकों और पाठकों से विनम्र अनुरोध है कि आप संवाद, सम्पर्क, सम्प्रेषण एवं अपनी शोध साहित्य-साधना से सदा इसके विकास में अपनी सहभागिता देते रहें। इस परम्परा को समृद्ध करते रहें। ज्ञानसंवर्द्धन एवं नये तथ्यों की खोज में हमारे सफल प्रयत्नों के साथ आप भी सदा साथ रहें। इसी आशा और विश्वास के साथ - "ज्ञानाराधना में तुलसी प्रज्ञा आप भी पढ़ें सबको भी पढ़ायें।" सम्पादक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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