Book Title: Tulsi Prajna 1998 01 Author(s): Parmeshwar Solanki Publisher: Jain Vishva Bharati View full book textPage 4
________________ संपादकीय शलाका-परीक्षा का आयोजन जैन विश्व भारती संस्थान में जैन विद्या के प्रौढ़ पाण्डित्य की परंपरा को पल्लवित-पुष्पित करने के लिए विविध उपक्रम चल रहे हैं। उनमें एक उपक्रम है-स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त पांच समणियों द्वारा जैन विद्या संबंधी प्रौढ़ ग्रन्थों का अनुशीलन । पूज्य गुरुदेव श्री तुलसी ने अपने जीवन के अंतिम चरण में एक पंचवर्षीय योजना तैयार को थो । उसको क्रियान्विति के अन्तर्गत विगत वर्ष में आचार्य हेमचन्द्र की कृति -प्रमाण-मीमांसा का अनुशोलन किया गया । इस गहन अध्ययन का परीक्षण गत ९ जून को हुआ । परोक्षण के लिए प्राचीन भारतीय पद्धति से शलाका-परीक्षा लेने की प्रविधि अपनाई गई और यह परीक्षा स्वयं आचार्य श्री महाप्रज्ञ ने ली। शलाका-परीक्षा में परीक्षक, परीक्षा ग्रन्थ के किसी भी अंश की व्याख्या किसी भी परीक्षार्थी से पूछ सकता है । परीक्षार्थी को पूछे गए अंश की संदर्भ सहित व्याख्या तत्काल मौखिक रूप से करनी होती है। अंग्रेजों के आने के पूर्व तक इसी पद्धति से परीक्षार्थी के ज्ञान की परीक्षा होती थी जो परीक्षार्थी के सांगोपांग अध्ययन की परिचायक है । इस विलुप्त परम्परा को पुनर्जीवित होते हुए देखने का दुर्लभ अवसर इस आयोजन में उपलब्ध हुआ। जैन विश्व भारती के प्रज्ञालोक-सभागार में उपस्थित विद्वत समाज एवं चतुर्विध संघ के सामने आचार्य श्री महाप्रज्ञ ने पांचों समणियों से, पूर्व में बिना बताए, किसी एक परीक्षार्थी को संबोधित करके 'प्रमाण-मीमांसा' को एक पंक्ति का पूर्वांश बोला और उसमें अन्तनिहित शंका-समाधान की जानकारी ली। तदुपरांत उस पंक्ति के संबंध में गहन प्रश्न और वितर्क उपस्थित किए। क्रमश: पांचों समणियों ने अपनी-अपनी पर्यषणा-परीक्षा, धर्मसंघ की मर्यादाओं का पालन करते हुए परन्तु उन्मुक्त भाव से तर्क-वितर्क में भाग लेकर दी और अपने मन्तव्यों का विस्पष्ट प्रकटीकरण करके उपस्थित विद्वत समाज को चमत्कृत कर दिया । आचार्यश्री द्वारा बारम्बार किए गए गले वितर्कों से परीक्षार्थी अप्रभावित रहे और अपने-अपने स्पष्टीकरण को खलासा करते रहे। तुलसी प्रज्ञा, लाडनूं-खंड २३, अंक ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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