Book Title: Tulsi Prajna 1996 04
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 8
________________ वस्तुतः बुद्धवचन श्रीलंका में जाकर लिपिबद्ध हुए और महावीर-वाणी गुजरातकाठियावाड़ अथवा दक्षिण में जाकर संरक्षित हुई। इसीलिये बौद्धों ने अपने पिटक को पालि भाषा में निबद्ध बताया है और श्वेतांबर जैनागमों में उनकी भाषा को अर्द्धमागधी भाषा (१८ भाषाओं की मिली-जुली भाषा-निशीथ चूर्णि) कहा गया है । जबकि भगवान महावीर वैशाली में जन्में और मगध की प्रचलित भाषा में उन्होंने उपदेश किया। जैनागमों की प्रथम वाचना पाटलिपुत्र में और दूसरी वाचना मथुरा में हुई। इसलिए यदि केवल संज्ञापद (नाममात्र) को रखना ही आग्रह का कारण है तो मथुरा की भाषा कहने में किसी को कोई ऐतराज नहीं होना चाहिए क्योंकि दक्षिण भारत में भी उत्तरी मथुरा की तरह दक्षिणी मथुरा (मदुरा) है और शेष गिरिराव जैसे विद्वान् के शब्दों में-'मेरे पास तमिल साहित्य में और लोक बोली में इस बात के अनेक प्रमाण हैं; कि जिस प्रकार की प्राकृत में आचार्य कुंदकुंद ने अपने ग्रन्थ निवद्ध किए हैं, वह केवल समझी ही नहीं जाती थी बल्कि आन्ध्र और कलिंग प्रदेशों में जन सामान्य के द्वारा बोली भी जाती थी'---(दी एज आफ कुंद कुंद)-ऐसे संदर्भ भी मौजूद हैं। -परमेश्वर सोलंकी खण्ड २२, अंक १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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