Book Title: Tritirthi Author(s): Rina Jain Publisher: Prakrit Bharti Academy View full book textPage 8
________________ प्रस्तावना भारतीय संस्कृति में महापुरुषों के जीवन से सम्बन्धित स्थानों और तिथियों को बड़ा भारी महत्त्व दिया गया है। जिन स्थानों पर उनका च्यवन, जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान और मोक्ष होता है, जहाँ-जहाँ भी वे विचरण करते हैं, उनके जीवन की विशेष घटना घटती है, साधना करते हैं, सिद्धि पाते हैं, उन सब स्थानों को तीर्थ माना जाता है। जिस स्थान से अथवा जिसके सहारे संसार-सागर से तिरना होता है उसे तीर्थ कहा जाता है। जैन धर्म में सर्वोच्च पद तीर्थंकर है। चतुर्विध संघरूप तीर्थ की स्थापना करने के कारण वे तीर्थङ्कर कहे जाते हैं। इनके द्वारा असंख्यात प्राणियों का निस्तार होता है, धर्म का मर्म प्रकाशित होता है, जिज्ञासु भव्यजन मार्गदर्शन पाते हैं। तीर्थंकर और उनकी वाणी के आश्रय से लाखों-लाखों प्राणी निर्वाण पथ के अनुगामी होते हैं इसलिए उन अनंत उपकारी तीर्थंकरों के नाम स्मरण, पूजा-भक्ति द्वारा अनन्त जन्मों के अनन्त कर्म नष्ट हो जाते हैं। उनकी स्तवना में हजारों कवियों ने अनेक भाषाओं में अनेक विषयों को लेकर अनेक स्तोत्र, स्तवन-रास, चरित्र काव्यादि रचे हैं। तीर्थङ्करों के जन्मादि महत्त्वपूर्ण तिथियों की शास्त्रीय रूप से पंचकल्याणक तप के रूप में आराधना की जाती है। इन पंचकल्याणकों के . अनेक वर्णन मूर्तिकला-चित्रकलादि में चित्रित किए गए हैं। तीर्थंकरों से सम्बन्धित सभी स्थानों को तीर्थरूप में मान्य करके वहाँ की यात्रा करने की प्राचीन परम्परा है। आचाराङ्ग नियुक्ति तक में इन स्थानों की पूज्यता का उल्लेख है। प्रस्तावना VIIPage Navigation
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