Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित
सप्तम पर्व
प्रथम सर्ग अंजन के समान कान्तियुक्त हरिवंश के चन्द्र तुल्य मुनि सुव्रत स्वामी के तीर्थ में बलदेव पद्म (राम) वासुदेव नारायण (लक्ष्मण) और प्रतिवासुदेव रावण उत्पन्न हुए । अब मैं उनका चरित्र विवृत करूंगा।
(श्लोक १-२) - जिस समय अजितनाथ स्वामी पृथ्वी पर विचरण कर रहे थे उसी समय भरत क्षेत्र के राक्षस द्वीप की लंकापुरी में राक्षस वंश के अंकुरभूत धनवाहन नामक एक राजा राज्य करते थे। उन विवेकवान राजा ने अपने पुत्र महाराक्षस को राज्य देकर तपश्चर्या द्वारा मोक्ष प्राप्त किया। महाराक्षस अपने पुत्र देवराक्षस को राज्य देकर दीक्षा अंगीकार कर मोक्ष गए । इस प्रकार उत्तरोत्तर राक्षस द्वीप में अनेक राजा हए । तीर्थकर श्रेयांस के तीर्थ में कीर्तिधवल नामक एक राजा इसी राक्षस द्वीप में राज्य कर रहे थे।
(श्लोक ३-६) उस समय वैताढ्य पर्वत पर मेघपुर नगर में विद्याधरों के प्रसिद्ध राजा अतीन्द्र हुए थे। उनकी पत्नी का नाम श्रीमती था। श्रीमती के गर्भ से उनके दो सन्तान उत्पन्न हुयी । एक श्रीकण्ठ नामक पुत्र था। दूसरा देवी-सी रूपवती देवी नामक कन्या थी। रत्नपुर के राजा पुष्पोत्तर नामक विद्याधरपति ने अपने पुत्र पद्मोत्तर के लिए सुन्दर नेत्रवाली देवी के लिए प्रार्थना की; किन्तु दैवयोग से अतीन्द्र ने गुणवान् और श्रीमान् होने पर भी पद्मोत्तर को कन्या देना अस्वीकार कर देवी को राक्षस द्वीप के राजा कीतिधवल को दे दिया। देवी का विवाह कीर्तिधवल से हो गया है यह सुनते ही पुष्पोत्तर क्रोधित हो गए और तभी से अतीन्द्र और श्रीकण्ठ के प्रति शत्रुभावापन्न हो गए।
(श्लोक ७-१०) __ एक बार मेरु से लौटते हुए श्रीकण्ठ ने पुष्पोत्तर की पद्म-सी कन्या रूपवती पद्मा को देखा । उसी मुहूर्त में कामदेव के विकार