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श्री त्रिभंगीसार जी प्रश्न- षट् कमल की साधना का स्वरूप क्या है, उन्हें कैसे खिलाया
जाता है? समाधान - यह साधना-ॐ या ॐ नमः सिद्ध के मंत्र जाप से की जाती है, इसमें विशेष बात यह है कि यह पूर्ण ब्रह्मचर्य और आहार-विहार की शुद्धिपूर्वक होना चाहिए। यहाँ कोई शारीरिक क्रिया नहीं होती, इसलिए पेय पदार्थ या हल्का भोजन लेना चाहिए, वरना साधना में व्यवधान पड़ सकता है।
प्रात:काल ब्रह्म मुहूर्त में शुद्ध पवित्र होकर, सिद्धासन या पद्मासन लगाकर मेरूदण्ड को सीधा करके बैठें। नासाग्र दृष्टि रखें, ॐ या ॐ नम: सिद्धं का मानसिक जप करें। जप की इतनी तन्मयता हो जाये कि बाहर-भीतर का कोई पता न रहे । अपना परमात्म स्वरूप सिद्ध स्वरूप शुद्धं प्रकाशं शुद्धात्व तत्व ही दिखता रहे यह स्थिति बनने पर उसमें कितने समय रह सकते हैं, यह साधक को होश रहना चाहिए। जहाँ मन सक्रिय हो, वहाँ इन कमलों पर ध्यान करो।
१.गुप्त कमल-लिंग और गुदा के बीच स्थान पर छह पंखुड़ी का कमल बनाकरछह अर्क स्थापित करो-१. कमल सी अर्क २. चरन सी अर्क ३. करन सी अर्क ४. सुवन सी अर्क ५. हंस सी अर्क ६. अवयास सी अर्कऔर इनका बार-बार चिंतन मनन करो।
प्रश्न- यह अर्क क्या है और इनका अभिप्राय क्या है? समाधान-अर्क का अर्थ प्रकाश या सूर्य है, सी का अभिप्राय श्री या श्रेष्ठ है और नाम के अनुरूप अनुभूति करना जैसे -
१.कमल सी अर्क- निज शुद्धात्म स्वरूप को कमल के समान प्रकाशित सुवासित खिला हुआ देखना और उसी के आनंद में डूबना यह कमल सी अर्क है।
२. परन सी अर्क- स्वरूपाचरण के प्रकाश से आत्मा को प्रकाशित करने वाला, चरन सी अर्क है।
३. करन सी अर्क- आत्मा के परम पुरुषार्थ को प्रगट करने वाला करन सी अर्क है। इसमें षट्कारक के माध्यम से ध्यान होता है।
४.सुवन सी अर्क-आत्मस्वरूप को उत्पन्न करने वाला आत्मा ही है, ऐसा शाश्वत अनुभव करना सुवन सी अर्क है।
गाथा-५२,५३,५४ ५.ईस सी अर्क- पर द्रव्यों से अपने स्वरूप को भिन्न अनुभव करने वाला स्वानुभव सम्पन्न हंस सी अर्क है।
६. अवयास सी अर्क- अपने स्वरूप के अनन्त गुणों में अवगाहन करना और इसी का बार-बार अभ्यास करना, अवयास सी अर्क है।
प्रश्न- गुप्त कमल के खिलने से क्या उपलब्धि होती है ? समाधान- गुप्त कमल में आसन की दृढ़ता और ब्रह्मचर्य की विशेषता है । जब यह कमल खिल जाता है तो उसके चेहरे पर ब्रह्मतेज चमकने लगता है, वक्तापना आ जाता है। मनुष्यों में श्रेष्ठ, सर्व विद्याओं में पारंगत, प्रसन्न चित्त, आरोग्य और कवि बन जाता है। माया धनादि चरणों में लोटता है। इसी को वैदिक दर्शन में कुण्डलिनी जागरण कहा है। इसमें एक खतरा है कि इसमें काम की प्रबलता और माया बाधा बनती है। यदि आत्मनिष्ठ ज्ञानी है तो अपने मार्ग से आगे बढ़ता चला जायेगा। विशेष बात यह है कि योग, ध्यान, साधना में सिद्धियाँ सहज ही प्रगट होती हैं। इसमें सावधानी रखना, साधक के लिए विशेष आवश्यक है। प्रश्न- यह सिद्धियाँ कैसी और कौन सी होती है?
समाधान - जो संयम पूर्वक योग साधना,ध्यान समाधि लगाता है, उसे प्रारंभिक निम्न सिद्धियाँ होती हैं। विशेष और स्थिति बढ़ने पर होती जाती हैं, जैसे अंतर्ध्यान हो जाना , मृत्यु ज्ञान , अजेय बल , भूत भविष्य का ज्ञान , ज्योतिष आदि का ज्ञान , शुभाशुभ फल आदि जानने में आना , उक्त सिद्धियाँ साधक को अपने स्वरूप साधना में बाधा हैं। इनसे विरक्त होकर ज्ञान मार्ग प्रगट होता है । यह सिद्धियाँ संसार चक्र में फँसाने वाली बड़ी बाधाएँ अनिष्टकारी हैं। इनमें साधक को सावधान रहना चाहिए। प्रश्न - नाभि कमल का स्वरूप क्या है?
समाधान- इसमें साधना तो वही मंत्र जप और ध्यान की एकाग्रता करना है। विशेषता यह होती है कि गुप्त कमल के खिलने से उसका प्रकाश ऊपर उठने लगता है। नाभि कमल को गुदगुदाने लगता है । साधक इस नाभि कमल पर भी उसी प्रकार छह पंखुड़ी बनाकर १. दीप्ति सी अर्क २. सुदिप्ति सी अर्क ३. अभय सी अर्क ४. सुर्क सी अर्क ५. अर्थ सी अर्क ६. विन्द सी अर्क का जागरण करता है। प्रश्न- इन छह अर्क का स्वरूप क्या है ? समाधान -१.दिप्ति सी अर्क - अपने अर्क स्वभाव को त्रिकाल प्रकाशित करके देखना दिप्ति सी अर्क है।