Book Title: Tribhangi Sara
Author(s): Gyanand Swami
Publisher: Taran Taran Sangh Bhopal

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Page 95
________________ श्री त्रिभंगीसार जी 152 स्वाध्याय और आत्मज्ञान आवश्यक क्यों? १.तारण पंथ (मुक्ति का मार्ग) क्या है ? यह जानने के लिये। 2. आनंद परमानंदमय जीवन बनाने तथा आत्म कल्याण करने के लिये। 3. ज्ञान का विकास और गहराई में उतरने के लिये। 4. आगम और अध्यात्म के रहस्यों को समझने के लिये। ५.निश्चय-व्यवहार से समन्वित मुक्ति मार्ग प्राप्त संसार से छूटने और मुक्ति की प्राप्ति करने के लिये, इन चौदह ग्रंथों का स्वाध्याय करना और अपने आपको जानना बहत आवश्यक है। भजन-३२ द्वादशांग का सार भरा है , ज्ञान समुच्चय सार में। चेतो जागो उठो चलो अब,क्या रक्खा संसार में। काल अनादि जग में भटके,चारों गति दुःख पाये हैं। बड़े भाग्य से नरभव पाया , सद्गुरु वचन सुहाये हैं। दांव लगादो हिम्मत करलो, मत डूबो मझधार में... ग्यारहअंग और चौदह पूर्व में, एक बात ही आई है। अप्पा शुद्धप्पा परमप्पा, परमानंद सुहाई है / तारण तरण की वाणी है यह, देखो श्रावकाचार में... 3. संयम नियम करो अब जल्दी,अणुव्रत महाव्रत को धारो। विषय कषाय पाप छोड़कर , मोह राग को भी मारो॥ इस जीवन को सफल बनाओ, कहा त्रिभंगीसार में... 4. मालारोहण पंडित पूजा , कमल बत्तीसी जगा रही। अपना ही खुद निर्णय करलो,मुक्ति मार्ग जगमगा रही।। शुद्धस्वभाव की अनुपम महिमा,कही उपदेशशुद्धसार में.. खातिकाविशेष नाममाला , सिद्धि शून्य स्वभाव में। छद्मस्थ वाणी जगा रही है , मत भटको परभाव में। चौबीसठाणा ममलपाहुड़ है , ज्ञानानंद भंडार में... ज्ञानदान स्वाध्याय हेतु उपलब्ध सत्साहित्य * श्री श्रावकाचार टीका 60 रुपया * श्री उपदेश शुद्ध सार टीका 60 रुपया * श्री मालारोहण टीका (तृतीय संस्करण) - ३०रुपया * श्री पंडितपूजा टीका २०रुपया * श्री कमलबत्तीसी टीका 25 रुपया * श्री त्रिभंगीसार टीका 30 रुपया * अध्यात्म अमृत (जयमाल, भजन) १५रुपया * अध्यात्म किरण १५रुपया (जैनागम 1008 प्रश्नोत्तर) * अध्यात्म भावना १०रुपया * अध्यात्म आराधना (देव गुरु शास्त्र पूजा) १०रुपया * ज्ञान दीपिका भाग- 1, 2, 3 (प्रत्येक) - ५रुपया प्राप्ति स्थल१. ब्रह्मानन्द आश्रम, संत तारण तरण मार्ग, पिपरिया, जिला- होशंगाबाद (म. प्र.) 461775 फोन-(०७५७६) 22530 2. श्री तारण तरण अध्यात्म प्रचार योजना केन्द्र, 61 मंगलवारा, भोपाल (म.प्र.) 462001 फोन : (0755) 705801,741586 हेभव्य!तूभावश्रुतज्ञानरूपीअमृतकापान कर, सम्यक् श्रुतज्ञान द्वाराआत्मा का अनुभव करके निर्विकल्प आनंदस्सका पान कर, जिससे तेरीअनादि मोह तृषा कीदाह मिट जायेगी। जय तारण तरण★ *इति

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