Book Title: Tribhangi Sara
Author(s): Gyanand Swami
Publisher: Taran Taran Sangh Bhopal

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Page 88
________________ १३८ १३९ श्री त्रिभंगीसार जी भजन-९ हे वीर उठो पुरुषार्थ करो, जिनवाणी माँ ललकार रही। क्यों कायर बनकर बैठे हो,जिनवाणी माँ धिक्कार रही। १. यह मौका मिला सुनहरा है, शुभ योग सभी तुमने पाया। यह जैन धर्म श्रावक कुल में , तारण गुरु के शरणे आया। २. तुम धर्म अहिंसा पालक हो, और वीतराग के अनुयायी। जिनने कर्मों को जीत लिया , उनने ही मुक्ति श्री पाई। तुम ज्ञानानंद स्वभावी हो,और अनंत चतुष्टय धारी हो। हो सिद्ध स्वरूपी शुद्धातम, कैसी मति यह मारी हो । यह बनियों का है धर्म नहीं,न कायर इस पर चलते हैं। हो शूरवीर क्षत्रिय योद्धा, जो मोह राग को दलते हैं। नर हो न निराश करो मन को,पुरुषार्थ करो पुरुषार्थ करो। तुम महावीर के बेटे हो , साधु बनकर महाव्रत धरो॥ आध्यात्मिक भजन भजन-११ हे भवियन अपनी सुरत रखो। ध्रुव शुद्ध निज शुद्धातम है,सिद्ध स्वरूप लखो। १. पर की तरफ जरा मत देखो,विभाव में मती बहो। किससे क्या लेना देना है , निजानंद रस चखो...हे... २. जब जैसा जो कुछ होना है , टारो नाहीं टरो। सिद्ध स्वरूपी शुद्धातम तुम , बाहर काये भगो...हे... ३. त्रिकाली पर्याय क्रमबद्ध , जिनवाणी में लखो। शांत स्वस्थ रहो अपने में , सहजानंद चखो...हे... ४. ज्ञानानंद स्वभाव तुम्हारा,मद मिथ्यात्व हो। छोड़ो यह सब दुनियांदारी, साधु पद को धरो...हे.. भजन-१० जा राग में आग लगाओ रसिया॥ इस शरीर का पीछा छोड़ो,पर से अब अपना मुँह मोड़ो। सब कर्मों की होली जलाओ, रसिया....जा राग में.... संयम तप में अब रंग जाओ,मुक्तिश्री संग रास रचाओ। वीतरागता की धूम मचाओ, रसिया....जा राग में.... मोह मान के गढ़ को तोड़ो, राग द्वेष का पीछा छोड़ो। समता भाव जगाओ , रसिया.... जा राग में .... ज्ञानानंद निजानंद टेरो , भाव विभाव के भूत जे हेरो। सहजानंद रम जाओ , रसिया ....जा राग में .... भजन-१२ मैं ही मेरी सिद्ध शिला हूँ,मैं ही तो ध्रुव धाम हूँ। मैं ही परमबह्म परमेश्वर, मैं ही आतम राम हूँ। मैं ही अपना कर्ता धर्ता , मैं ही पूर्ण निष्काम हूँ। एक अखंड अविनाशी चेतन , मैं ही तो घनश्याम हूँ। मैं ही अनंत चतुष्टय धारी , वीतराग भगवान हूँ। रत्नत्रयमय स्वरूप मेरा , मैं ही पूर्ण विराम हूँ। ३. ब्रह्मानंद सहजानंद हूँ मैं , मैं ही सिद्ध भगवान हूँ। मैं ही ज्ञानानंद स्वभावी , निजानंद अभिराम हूँ। मैं अरस अरूपी ज्ञान चेतना , सच्चिदानंद सुखधाम हूँ। नाम रूप का भेद नहीं कुछ , मैं तो सदा अनाम हूँ।

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