Book Title: The Jain 1988 07
Author(s): Natubhai Shah
Publisher: UK Jain Samaj Europe

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Page 177
________________ -join अभिनंदन गीत RAVHARIVARIVARIVAR RCORRECORReOOROSORROOOOOL ഭിഷിക്താക്കിയിരി आंग्लभूमिपर आज वीर की वाणी गूंज रही है । जन-मन में खुशिओं की लो शहनाई गँज रही है ।। धन वैभव की नगरीमें संस्कृतिका पुष्प खिला है । गौरव गाथा के सुमरन का अवसर धन्य मिला है । तीर्थकर की वाणी को सुनने का अवसर आया । आगम इस भूमिपर मानों स्वयं उतरकर आया । ॐ पंचपरमेष्ठी की ध्वनि पूजन में निखर रही है । आंग्लभूमि पर आज वीर की वाणी गूंज रही है ।। लेस्टरके इस आंगनमें मंदिर ऐसा सोहित है। जिसे देखकर जन-मन का मन हो जाता मोहित है । चालीस और चार खंभों पर शिल्पकला न्यारी है । यक्ष-यक्षिणी से शोभित तीर्थकर-छबि प्यारी है। धवल संगमर्मर से शशि की किरणें बिखर रही है । आंग्लभूमि पर आज वीर की वाणी गूंज रही है ।। गर्भ-गृहमें शांतिनाथ की शांति यहां मुखरित है । पार्श्व- वीर की दृढता-करुणा कण-कण में प्रसरित है । विश्वपिता भगवान ऋषभजी यहां सुशोभित होते । नेमिप्रभु की करुणा के स्वर मनमें करुणा बोते । बाहुबली की तप-मुद्रा निस्पृहता जगा रही है । आंग्लभूमि पर आज वीर की वाणी गूंज रही है । गुरु गौतम की द्वादशांग वाणी के स्वर गुंजित है । श्रीमद् राजचंद्र की वाणी ग्रंथों में गुंफित है । घंटाकर्ण देव, देवी पद्मावती रक्षारत है । चक्रेश्वरी, अंबा, लक्ष्मीजी, सरस्वती शोभित है । दर्शन-झान-चरित्र बने दृढ इच्छा पनप रही है । आंग्लभूमि पर आज वीर की वाणी गूंज रही है ।। जैन एकता का ऐसा न कभी उदाहरण देखा । वीरप्रभू की संतानों का मेल न ऐसा देखा । 'नटुभाई' अरु श्रावकजन की दीर्घ दृष्टि देखी है । हम सब बनकर एक रहे भावना यही देखी है । पश्चिम की यह गूंज पूर्वको प्रेरित बना रही है । आंग्लभूमि पर आज वीर की वाणी गूंज रही है ।। ईसाका निश्च्छल प्रेम, वीरकी करुणा का संगम है । टेम्स और गंगाकी पावन संस्कृति का संगम है । 'जिओ-जिलाओ' मंत्र आत्म-जीवन में भरना होगा । युद्ध-मुक्त हो विश्व, अहिंसा को फैलाना होगा । जन-मन में मानवताकी नवज्योति झलक रही है आंग्लभूमि पर आज वीरकी वाणी गूंज रही है । VAMANNA IS डॉ. शेखर जैन, भावनगर 144 Jain Education Interational 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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