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उतारने के ध्येय से नैवेद्य-पूजा करने की है ।
नैवेद्य अर्थात् मेवा-मिष्टान्न इत्यादि ।
स्वस्तिकादि के ऊपर नैवेद्य रख कर नैवेद्य पूजा करनी चाहिये।
नैवेद्य-पूजा के समय निम्नोक्त दोहा बोलें
अरणाहारी पद में कर्या, विग्गहईय अनंत | दूर करो ते दीजियें, धरणाहारी शिव-संत ॥
भावार्थ :- आत्मा एक गति से दूसरी गति में जाते समय यदि विग्रत गति में गई होवे तब ( मात्र एक दो या तीन समय) सम्पूर्ण माहार का त्याग करती है, अर्थात् विग्रह गति के अन्तर्गत आत्मा आहार ग्रहण नहीं करती है, परन्तु विग्रहगति के सिवाय समस्तकाल में आत्मा आहार ग्रहण करती ही है, इस स्तुति द्वारा पूजक परमात्मा से यह प्रार्थना करता है कि हे परमात्मा ! विग्रह गति के अन्तर्गत तो मैंने अनंतबार अरणाहारी अवस्था को प्राप्त की है, परन्तु यह क्षणिक अवस्था तो मेरी आत्मा को कैसे आनन्द दे सकती है, अतः उस अणाहारी अवस्था को छोड़कर शाश्वत मोक्ष रूप अरणाहारी अवस्था मुझे प्रदान करें । फल पूजा :
इन्द्रादिक- पूजा भरणी, फल लावे धरी राग । पुरुषोत्तम पूजी करी, मांगे शिव फल त्याग || चामर व नृत्य पूजा :
अष्ट प्रकारी पूजा की समाप्ति के बाद पूजक का हृदय हर्ष से भाव-विभोर हो उठता है, अतः उस भक्ति भाव से पूजक का देह भी नाच उठता है । 'मुक्तिथी अधिक तुज भक्ति मुज मन वशी'-भाव को व्यक्त करने वाली चामर व नृत्य पूजा करनी चाहिये।
मस्तक झुका कर चामर विझते हुए नृत्य सहित यह पूजा करनी चाहिये ।
अंग व अग्र पूजा की समाप्ति स्वरूप आरती तथा मंगल दीप :
नैवेद्य-पूजा के बाद अंग-पूजा की अंतिम पूजा फल- पूजा है । अग्र-पूजा की समाप्ति समय फल की याचना स्वरूप यह पूजा है। सुगंधी, ताजे व कीमती फलों से फल- पूजा कर परमात्मा से सर्व अनुष्ठान के फल रूप सिद्ध- पद और पंचमी तत्साधक संयम रूप फल की याचना करने की है ।
फल- पूजा के समय निम्नोक्त दोहा बोलें।
अनंत उपकारी श्री तीर्थंकर परमात्मा की अत्यंत उल्लासपूर्वक अंग व अग्र स्वरूप प्रष्ट प्रकारी पूजा की
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समाप्ति के बाद भाव मंगल की प्राप्ति हेतु प्रारती व मंगल दीप करना चाहिये ।
आरती व मंगल दीप अपनी बायीं ओर से ऊंचे ले जाते हुए, दायीं ओर नीचे से उतरना चाहिये, इसके साथ ही नाभि से नीचे तथा मस्तक से ऊपर भी नहीं ले जाना चाहिये । आरती व मंगल दीप उतारते समय अपनी दृष्टि परमात्मा के सन्मुख रखें ।
: भारती समय बोले जाने वाले दोहे : जय जय आरती आदि जिणंदा,
नाभिराया मरुदेवी को नंदा जय० ।।१।।
पहेली भारती पूजा कीजे,
नरभव पाने लाहो लीजे. जय० ||२|| दूसरी आरती दीन दयाला,
धूलेवा नगरमा जग अजवाला;
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तीसरी भारती त्रिभुवन देवा,
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चौथी भारती चउगति चुरे,
सुरनर इन्द्र करे तेरी सेवा.
जय० ||३||
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जय० ||४||
मन वांछित फल शिवसुख पूरे जय० ॥५॥ आरती पुण्य उपाया,
मूलचन्द रिलव गुण गाया. : मंगल दीप के दोहे : दीवा रे दीवो प्रभु मंगलिक दीवो,
आरती उतारो ने बहु चिरंजीवो. सोहामरणी घेर पर्व दीवाली,
अम्बर खेले अमरा बाली. दीपाल भरणे श्रेणे कुल अजुप्राली,
भावे भगते विघन निवारी. दीपाल भणे श्रेणे कलिकाले,
भारती उतारी राजा कुमार पाले. प्रेम घेर मंगलिक तुम घेर मंगलिक,
मंगलिक
चतुविध संघने होजो. दीवा रे दीवो.............
जय० || ६ ||
चीफ श्रीमती सूरज भंडारी
18, फोरेन्स मेन्सन, बोबीन एवेन्यू हेडन सेन्टर, लन्दन
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