Book Title: The Jain 1988 07
Author(s): Natubhai Shah
Publisher: UK Jain Samaj Europe

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Page 188
________________ gain क्रियाएँ कर्म अभिधा से व्यवहृत हुई हैं। जैन दृष्टि में कर्म पर्युषण पर्व वस्तुतः जगत् कल्याणकर्ता तीर्थकरदेव की वह तत्त्व है जो प्रात्मा से विजातीय पौद्गलिक होते हुए भी पीयूष वाणी पोने का शुभकाल है। भगवान का संश्लिष्ट होता है और उसे प्रभावित करता है । महामङ्गलकारी पावन श्रवण, पठन और मनन करने तथा उनको वाणी का अमृत गुरुजनों एवं सुविज्ञ साधुजनों से श्रवण ममता से समता की ओर : करने का सुअवसर है। पर्युषण पर्व मनुष्य को ममता से समता भाव में ले जाने क्षमापना दिवस: वाला पर्व है। मोह-माया के प्रभाव से प्रात्मा ममता, पर्युषण महापर्व की समाप्ति क्षमापना दिवस के रूप में स्वार्थपरायणता, ईर्ष्या और द्वेष में बंधी रहती है। उसे एक होती है। क्षमापना अर्थात् समस्त प्राणियों को अपने द्वारा क्षण भी शांति नहीं मिलती। पर्युषण पर्व की आराधना जानते हुए या अनजाने किये गये अपराधों के लिए क्षमा मांगी ड़ी काट देता है। ममता का विसजन अथात् जाती है। क्षमापना में यह पीयूष वाणी असंख्य मानससंसार के विषय सुखों से विरक्ति। यहीं से मानव को शुभ वीणाओं पर गूंजती है : यात्रा का शुभारम्भ होता है। विकार नहीं होता। ऐसी हो परम स्थिति को जैन संस्कृति में धर्म कहा गया है। जोव का खामेमि सब्वे जीवा, सव्वे जीवा खमंतु में । प्रात्मस्वभाव में लौटना हो धर्म है। आत्म स्वभाव की मित्ति मे सव्व भूएसु, वैरं मझ न केरगई। उपलब्धि हेतु जैन धर्म में पाँच महाव्रतों का महत्त्व है। ये मैं सब जीवों से क्षमायाचना करता हूँ। मैं सब जीवों को महाव्रत हैं-अहिंसा, सत्य, अस्तेय अर्थात् चोरी नहीं करना, क्षमा करता हूँ। सब प्राणियों के प्रति मेरी मैत्री है। किसी ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रह। इन पांच महाव्रतों को साधु विरक्त के साथ मेरा वैरभाव नहीं है। मुनिजन ही पूर्णतया पाल सकते हैं परन्तु गृहस्थ अर्थात् श्रावक भो संसार में रहते हए इनका न्यूनाधिक पालन करते हैं। क्षमा की प्राप्ति नम्रभाव के अधीन है। नम्रभाव की पयूषण पर्व इन महाव्रतों को प्राचरण में लाने का सुअवसर उपलब्धि के लिए पर्युषण पर्व जैसे महापों का विधान है। पांच महाव्रतों में अहिंसा सभी शेष महाव्रतों को ज्ञानीजनों ने करके जगत् का कल्याण किया है। समाविष्ट करती है क्योंकि अहिंसा पालन में ये सभी महत्त्वपूर्ण पर्युषण पर्व भगवान महावीर की वाणी का प्रकाश फैलाने भूमिका निभाते हैं। अहिंसा को प्राचार में परिणत करने वाला दिव्य दीपक है। भगवान महावीर ने धर्म का शाश्वत के लिए अर्थात् जीवन में उतारने के लिए अनेकान्त एवं दोप जलाकर जगत् को प्रकाश दिया है, उसकी प्रभा अपरिग्रहवाद नितान्त आवश्यक है। निष्कलङ्क, शुभ्र और शीतल है। इस धर्म में अहिसा ही घृत ब्रह्मदर्शन का साधन : है, संयम बाती है, तप अग्नि है। दुर्लभ मानव जीवन दीप पयूषण पर्व प्रात्मस्वरूप अर्थात ब्रह्मदर्शन का महानतम पात्र है। इसे प्रज्ज्वलित करने की शक्ति भगवत्कृपा है। प्रभ साधन है। प्रात्मस्वरूप दर्शन पांच महाव्रतों अहिंसा, सत्य, कृपा भी सहज सुलभ है, केवल निर्मल भक्ति चाहिए। अस्तेय, ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रह को जीवन में ग्रहण कर रत्नत्रय पर्युषण पर्व भगवान महावीर की अहिंसा, विश्वमैत्री अर्थात् सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन तथा सम्यगचारित्र की और प्रेम की गंगाधारा प्रवाहित कर, समस्त जगत् का उपलब्धि से ही सम्भव है। "सम्यक दर्शन ज्ञान चरित्राणि कल्याण करे, यही शुभेच्छा है। मोक्षमार्ग:"। जैनदर्शन के सुविख्यात जर्मन विद्वान् हरमन जेकोबी ने त्रिरत्नों को Right Knowledge, Right Faith, (डॉ. सोहनलाल पटनी) Right Conduct की संज्ञा दी है। इन तीनों का समन्वित रूप कैवल्य सिद्धि है। कैवल्य अर्थात् केवल ज्ञान पूर्णज्ञान का पर्यायवाची है। इसे ही प्रात्मस्वरूप की प्राप्ति, संसार मुक्ति Best Compliments एवं ब्रह्मानन्द अर्थात् पूर्णानन्द कहते हैं । Samjibhai Bavabhai Vora जैनदर्शन पूर्णानन्द अथवा मोक्ष के लिए सम्यक् ज्ञान पर & Family बल देता है। सम्यक् ज्ञान शुद्ध ज्ञान को कहते हैं क्योंकि अनेक शास्त्रज्ञ एवं पण्डित होते हुए भी ज्ञानवान नहीं होते। VIDEO CENTRE अतः पर्यषण पर्व में तपाराधना के साथ-साथ ज्ञान साधना 384 Romford Road. London E7 8BS प्रमुख रूप से होती है। 155 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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