________________
पयुषण : आत्म-शुद्धि का पर्व
जेन संस्कृति का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण पर्व पर्युषण है। दस लक्षण : पर्युषण शब्द दो शब्दों से बना है, 'परि' और 'ऊषण' ।
दिगम्बर जैन सम्प्रदाय पर्युषण पर्व को दस लक्षण पर्व के परि अर्थात् सम्पूर्ण और ऊषण का अर्थ है वास । प्रात्मा में पूर्णतया निवास करना पयुषण का अर्थ है। शब्दार्थ से यह रूप में मनाता है। दस लक्षण धर्म का उल्लेख प्राचार्य स्पष्ट है कि समस्त सांसारिक प्रवृत्तियों एवं प्रक्रिया-कलापों उमास्वामी कृत तत्वार्थ सूत्र के नवम् अध्याय में इस प्रकार को छोड़कर प्रात्म लोक में निवास करना। आत्मा में वास । है-उत्तम क्षमामार्दवार्जव शौच सत्य संयमतपस्त्यागा किंचय का अर्थ है धर्म-ध्यान और प्रभु-भक्ति में रमण करना । ब्रह्मचर्याणि धर्मः । क्षमा, नम्रता, सरलता, पवित्रता, सत्य
पर्युषण का दूसरा अर्थ है-परिसमन्तात उष्यन्ते दहयन्ते संयम, तप, त्याग, आकिचन्य और ब्रह्मचय ये दस धर्म हैं । कर्माणि यस्मिन् पर्युषणम्।
जैन समाज के सभी सम्प्रदाय 'तत्वार्थ सूत्र' की मान्यता को
स्वीकार करते हैं। यह पर्व आत्मावलोकन एवं क्षमायाचना पूर्णतया आत्मा में निवास करके कर्मों को जलाया जाता
का पर्व है। पर्युषण पर्व क्षमा का अनुपम पर्व है। महावीर है जिसमें वह पर्युषण पर्व है।
के शासनकाल में राजा उदायन द्वारा अपराधी चन्द्रप्रद्योतन. पाँच कर्तव्य :
को क्षमा कर गले मिलने का उदाहरण कितना सुन्दर है। सभी जैन प्रति वर्ष भाद्रपद माह में पर्युषण पर्व की उसी परम्परा का पालन अाज भी जैन-जनतर समाज द्वारा अाराधना करते हैं। इस अाराधना से प्रात्मा अर्थात् प्रभु के किया जाता है। 'निशीथ सूत्र' के कथाकार ने यह लिखते समीप पहुँचा जा सकता है। इस पाराधना के अन्तर्गत हुए एक कथा का समापन किया कि जब अज्ञानी, प्रसयत श्वेताम्बर जैन सम्प्रदाय पाँचों कर्तव्यों का पालन करता है, ग्रामीणों और कुम्हार ने क्षमा प्रदान की तो साधुजनों की तो वे हैं :
बात ही क्या है ? उपर्युक्त कथानों से विदित हो जाता है (१) क्षमापना (२) अमारि प्रवर्तन (३) तपाराधन कि पर्युषण महापर्व जैन संस्कृति का अत्यन्त प्राचीन पर्व है। (४) साधर्मी वात्सल्य (५) चैत्य परिपाटी व मुनि दर्शन । पर्युषण पर्व मुख्यतः क्षमा और विश्वमंत्री का पर्व है। ___ क्षमापना अर्थात् समस्त जीवराशि से तन-मन से क्षमा कर्मक्षय करने का अवर मांगना और उनको क्षमा करना, जैन संस्कृति का मेरुदण्ड है। अमारि प्रवर्तन अर्थात् अहिंसा का पालन करना और हिंसा को
पर्युषण पर्व कर्मक्षय करने का सर्वोत्तम अवसर है। ये बन्द करने के लिए सुप्रयास करना । तपाराधन अर्थात् तप की
कर्म क्या हैं ? इनको बन्धन क्यों कहा गया है तथा इनके पाराधना करना । तप द्वारा प्रात्मा निर्मल बनती है।
कारण प्रात्मा मोहमाया में अर्थात सांसारिक जजाल में क्यों शरीरजन्य सुखों के प्रति विरक्ति पाती है, फलस्वरूप प्रात्मगुरण
फंसी रहती है ? इसका संक्षिप्त विवेचन पर्युषण पर्व के खिलते हैं। प्रात्मा में कोमलता का वास होता है, विश्व
महात्म्य को समझाने के लिए आवश्यक है क्योकि महापर्व की करुणा और मंत्री का प्रस्फुटन होता है। साधर्मी वात्सल्य का
पाराधना का उद्देश्य कर्मक्षय है। कर्म सिद्धान्त भारत के अर्थ है सदधर्म के उपासकों के प्रति स्नेह भाव । सदधर्म का उर्वरक मस्तिष्क की उपज है। ऋषियों के दीर्घ तपोबल से अर्थ है प्रात्मधर्म । समस्त प्राणियों में प्रात्मा का वास है अत:
प्राप्त नवनीत है। यथार्थ में पास्तिक दर्शनों का भव्य प्राणीमात्र वात्सल्य के अधिकारी हैं। चैत्य परिपाटी व
प्रासाद कर्म-सिद्धान्त पर टिका हुया है। कर्म स्वरूप निर्णय मुनिदर्शन का अर्थ है-मन्दिर, स्थानक अथवा धर्म स्थानों में
में, भले विचारैक्य न रहा हो, पर आध्यात्म सिद्धि कर्मभक्ति-भाव और उल्लास से जाना। पूज्यों को सभक्ति
विमुक्ति के बिन्दु पर फलित होता है-इस में कोई दो मत नमस्कार करना। पूज्यों के प्रति पूज्य-भाव से प्रात्म-कल्याण
नहीं हैं। महर्षि हरिभद्रसूरी कहते हैं—प्रकृति वियोगो होता है। समग्र रूप में ये पाँच कर्तव्य आत्मा के गुणों को प्रकट करने के साधन हैं। साध्य है क्षमा, नम्रता, सरलता, प्रत्येक दर्शन ने किसी न किसी रूप में कर्म को मीमांसा सन्तोष और ध्यान, इन पाँच गुणों की उपलब्धि। ये पाँच की है। लौकिक भाषा में कर्म कर्तव्य है। पौराणिकों ने गुण अमूल्य पंच रत्न हैं जिससे प्रात्म प्रकाश खिलता है ।
व्रत नियम को कर्म कहा है। सांख्य दर्शन में पांच सांकेतिक
मोक्षः।
154
Jain Education Intemational 2010_03
ation International 2010_03
For Private & Personal Use Only
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org