Book Title: Tattvarthashloakvartikalankar Part 02
Author(s): Suparshvamati Mataji
Publisher: Suparshvamati Mataji

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Page 15
________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक *2 सम्यग्दर्शनं न लभ्यत एव ततः प्रशस्तालोचनमात्रस्य लब्धेः। न च तदेवेष्टमतिव्यापित्वादभव्यस्य मिथ्यादृष्टेः प्रशस्तालोचनस्य सम्यग्दर्शनप्रसंगात्। तत: सूत्रकारोऽत्र “तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम्” इति तल्लक्षणं ब्रवीति, तद्वचनमंतरेणातिव्याप्तेः परिहर्तुमशक्तेः / शब्दार्थातिक्रमः श्रद्धानार्थत्वाभावाद् दृशेरिति चेत् न, अनेकार्थत्वाद् धातूनां दृशेः श्रद्धानार्थत्वगतेः / कथमनेकस्मिन्नर्थे सम्भवत्यपि श्रद्धानार्थस्यैव गतिरिति चेत्, प्रकरणविशेषात् / मोक्षकारणत्वं हि प्रकृतं तत्त्वार्थश्रद्धानस्य युज्यते नालोचनादेरर्थांतरस्य। भगवदर्हदाद्यालोचनस्य मोक्षकारणत्वोपपत्तेस्तत्प्रकरणादपि न तन्निवृत्तिरिति चेत्, तत्त्वार्थश्रद्धानेन रहितस्य मोक्षकारणत्वेऽतिप्रसंगात्, तेन सहितस्य तु तत्कारणत्वे तदेव मोक्षस्य कारणं तदालोचनाभावेपि श्रद्धानस्य तद्भावाविरोधात् // अर्थग्रहणतोनर्थश्रद्धानं विनिवारितम् / कल्पितार्थव्यवच्छेदोर्थस्य तत्त्वविशेषणात् // 3 // नहीं है। क्योंकि इससे तो भले प्रकार देखना ही अर्थ ध्वनित होता है तथा देखना अर्थ अतिव्याप्ति दोष से दूषित होने से इष्ट नहीं है क्योंकि सम्यगवलोकन करने वाले अभव्य मिथ्यादृष्टि के भी सम्यग्दर्शन का प्रसंग आता है। अर्थात् सम्यग्देखना तो अभव्य मिथ्यादृष्टि के भी होता है। इसलिए सूत्रकार ने यहाँ 'तत्त्वार्थ श्रद्धान ही सम्यग्दर्शन है' यह लक्षण कहा है। सम्यग्दर्शन के इस लक्षण के कथन बिना अतिव्याप्ति को दूर करना शक्य नहीं है। शंका : दृश् धातु के श्रद्धान अर्थ का अभाव होने से इसका श्रद्धान अर्थ करना शब्दार्थ का अतिक्रम है। समाधान : ऐसा नहीं कहना, क्योंकि धातुओं के अनेक अर्थ होते हैं, दृश् धातु का अर्थ श्रद्धान भी होता है। शंका : दृश् धातु के जब अनेक अर्थ होते हैं तो श्रद्धान अर्थ की ज्ञप्ति कैसे होती है ? समाधान : दृश् धातु के अनेक अर्थ संभव होने पर भी प्रकरण विशेष से श्रद्धान अर्थ का ज्ञान होता है। क्योंकि यहाँ मोक्ष के कारणत्व का प्रकरण होने से सम्यग्दर्शन का अर्थ 'तत्त्वार्थश्रद्धान' करना ही श्रेयस्कर है। देखना आदि अर्थ करना उपयुक्त नहीं है, यह अर्थान्तर है। __ शंका : अर्हन्त देव आदि का दर्शन करने के भी मोक्षकारणत्व सिद्ध है अतः दर्शन का प्रकरण होने से देखने अर्थ की निवृत्ति नहीं होती ? समाधान : तत्त्वार्थ श्रद्धान से रहित प्राणी के अर्हन्त आदि के दर्शन को मोक्ष-कारणत्व मान लेने पर अतिप्रसंग दोष आता है अर्थात् अभव्य मिथ्यादृष्टि के भी अर्हन्त आदि का दर्शन मोक्ष का कारण हो जायेगा। सम्यग्दर्शन सहित के अर्हन्त आदि के दर्शन को मोक्ष का कारण मान लेने पर मोक्ष का कारण सम्यग्दर्शन ही सिद्ध होता है क्योंकि सम्यग्दृष्टि के अर्हन्त आदि के दर्शन के अभाव में भी सम्यग्दर्शन रहता है, इसमें कोई विरोध नहीं है। ___सम्यग्दर्शन का लक्षण कहने वाले सूत्र में 'अर्थ' के ग्रहण से अनर्थ श्रद्धान का निराकरण किया गया है और अर्थ के तत्त्व विशेषण से कल्पितार्थ श्रद्धान के सम्यग्दर्शन हो जाने की व्यावृत्ति की गई है॥३॥ 1. जो लक्षण लक्ष्य- अलक्ष्य दोनों में जाता है उसे अतिव्याप्ति कहते हैं अत: सम्यग्देखना ऐसा सम्यग्दर्शन शब्द का अर्थ करने पर यह अर्थ मिथ्यात्व और सम्यग्दर्शन दोनों में जाता है। अत: अतिव्याप्ति दोष से दूषित है।

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