Book Title: Tattvarthashloakvartikalankar Part 02
Author(s): Suparshvamati Mataji
Publisher: Suparshvamati Mataji

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Page 14
________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक *1 अथ सम्यग्दर्शनविप्रतिपत्तिनिवृत्त्यर्थमाह ___तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम् // 2 // ___ ननु सम्यग्दर्शनशब्दनिर्वचनसामर्थ्यादेव सम्यग्दर्शनस्वरूपनिर्णयादशेषतद्विप्रतिपत्तिनिवृत्तेः सिद्धत्वात्तदर्थं तल्लक्षणवचनं न युक्तिमदेवेति कस्यचिदारेका, तामपाकरोति;सम्यक् शब्दे प्रशंसार्थे दृशावालोचनस्थितौ / न सम्यग्दर्शनं लभ्यमिष्टमित्याह लक्षणम् // 1 // सूत्रकारोऽत्र तत्त्वार्थश्रद्धानमिति दर्शनम् / धात्वनेकार्थवृत्तित्वाद् दृशेः श्रद्धार्थतागतेः // 2 // सम्यगिति प्रशंसार्थो निपातः क्वयंतो वेति वचनात् प्रशंसार्थोयं सम्यक् शब्दः सिद्धः प्रशस्तनिःश्रेयसाभ्युदयहेतुत्वाद्दर्शनस्य प्रशस्तत्वोपपत्ते नचारित्रवत् / दृशेश्चालोचने स्थितिः प्रसिद्धा, दृशिन् प्रेक्षणे इति वचनात्। तत्र सम्यक् पश्यत्यनेनेत्यादिकरणसाधनत्वादिव्यवस्थायां दर्शनशब्दनिरुक्तेरिष्टलक्षणं अब मोक्षमार्ग का निरूपण करने के अनन्तर सम्यग्दर्शन की विप्रतिपत्ति (विवाद) का निराकरण करने के लिए आचार्य सूत्र कहते हैं - तत्त्वों का श्रद्धान सम्यग्दर्शन / तत्त्वरूप से कथित अर्थों का श्रद्धान करना सम्यग्दर्शन है॥२॥ शंका : सम्यक् और दर्शन इन दोनों शब्दों का जो वाच्य अर्थ है उसके सामर्थ्य से ही सम्यग्दर्शन के स्वरूप का निर्णय (निश्चय) और सम्यग्दर्शन के लक्षण सम्बन्धी अशेष विवादों के निराकरण की सिद्धि हो जाने से सम्यग्दर्शन की सिद्धि के लिए उसके लक्षण का कथन करने वाले सूत्र की रचना करना उपयुक्त नहीं है। इस प्रकार की गई किसी की शंका का निराकरण करते हैं। समाधान : सम्यक् शब्द ‘प्रशंसा' अर्थ में है अर्थात् सम्यक् शब्द का अर्थ है प्रशंसा और दर्शन शब्द सामान्य देखने के अर्थ में है, अतः सम्यग्दर्शन शब्द से अभीष्ट सम्यग्दर्शन का अर्थ प्राप्त नहीं होता। सो सूत्रकार ने इस में 'तत्त्वार्थश्रद्धानं' को ही सम्यग्दर्शन का लक्षण कहा है। धातुओं की अनेक अर्थों में वृत्ति (प्रवृत्ति) होती है अतः दर्शन का अर्थ यहाँ श्रद्धान होता है॥१-२॥ 'सम्यक्' यह प्रशंसार्थक शब्द निपात या क्विप प्रत्ययान्त है। इस कथन से यह सम्यक् शब्द प्रशंसार्थ में सिद्ध है क्योंकि यह सम्यक् शब्द प्रशंसनीय निःश्रेयस (मोक्ष) और अभ्युदय (सांसारिक चक्रवर्ती, इन्द्र, तीर्थंकर आदि) का कारण है अतः सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र के समान दर्शन का प्रशस्तत्व उपपत्ति युक्त है अर्थात् मोक्ष और अभ्युदय का कारण होने से दर्शन प्रशंसनीय है। ___ "दृशिन् प्रेक्षणे'' इस वचन से दृश् धातु आलोचन, देखने अर्थ में प्रसिद्ध है। अत: यहाँ जिसके द्वारा समीचीन देखा जा सकता है इस प्रकार करण साधनत्व, भाव साधनत्व आदि व्यवस्था होने पर दर्शन शब्द का निरुक्ति अर्थ से इष्ट लक्षण सम्यग्दर्शन प्राप्त नहीं होता। अर्थात्-जिसके द्वारा देखा जाता है, इस प्रकार दृशि धातु से ल्युट् प्रत्यय करके करणादि साधन से उत्पन्न हुआ दर्शन शब्द सम्यग्दर्शन का द्योतक

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