Book Title: Tattva Nyaya Vibhakar Author(s): Labdhisuri Publisher: Labdhisuri Jain Granthmala View full book textPage 6
________________ निवेदन। . 'जब हमने हमारी श्री लब्धिसूरीश्वर जैन ग्रन्थमाला की शुरुआत की थी तब हमें यह तनिक भी ख्याल न था कि, इतने थोडे ही से समय में जैन साहित्य के प्रौढ ग्रन्थों के प्रकाशन का सौभाग्य हमें प्राप्त हो सकेगा। अाज हम, हमारे पाठकों की सेवा में जैन साहित्य के एक महत्त्वपूर्ण प्रन्थ को दे रहे हैं । अनेकों ग्रन्थों में विकीर्ण जैन न्याय के विचारों का इस ग्रन्थ में गुरुदेव श्री विजयलब्धिसूरीश्वरजी महाराज ने बड़ी खूबी से संकलन किया है, जो निःसंदेह जैन न्याय के अभ्यासियों के लिये बडे ही लाभ का है । अनेकों ग्रन्थों को देखने के सिवाय केवल एक ही ग्रन्थ से जैन दर्शन के अधिकांश तत्त्वों एवं विचारों का परिचय उन्हें आसानी से प्राप्त होगा । और यह ग्रन्थ जैन साहित्य के लिये भी गौरव की चीज होगा ॥ आज से करीब तीन वर्ष पूर्व हम ने इस मूल मात्र तत्त्वन्यायविभाकर को प्रकाशित किया था जिसको देख के अनेकों विद्वानों, पंडितों एवं दर्शनशास्त्रियों ने इस प्रन्थ की उपादेयता की सराहना की थी और टीका, जो कि उस समय बन रही थी शीघ्र ही प्रकाशित करने की इच्छा व्यक्त की थी उनकी इस इच्छानुसार आज यह प्रन्थ स्वोपज्ञ न्यायप्रकाश नामक टीका के साथ प्रकाशित किया जा रहा है। अनेकों स्थानों पर जहां कि स्पष्टता की आवश्यकता महसूस होती थी टिप्पणीयां भी लगायी गई है। इसके साथ साथ हम उदयप्रभसूरिजी कृत और हेमहंसगणी के वार्तिक से युक्त आरंभसिद्धि नामक ज्योतिष के ग्रन्थ को भी प्रकाशित कर रहे हैं, वह भी हमारे लिये गौरव की बात है। अब हम एक बात स्पष्ट करना चाहते हैं कि पुस्तक के अन्तिम पन्ने में छपे साहाय्य की रकम के व्यौरे को देख वाचको को यह संदेह होना संभव है कि, इतनी साहाय्य होने पर भीPage Navigation
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