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* तारण पाणी
१२७- चरन सहाई तं चरन रमन जिनु, चरन चरिय जिननाथ सुर्य ।
भवियन ! तरन चरन जिन सिद्धि जयं ॥
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श्री तारन स्वामी साधुओं को संबोधन करते हुए कहते हैं- हे भव्यजन ! चरित्र स्वभाव ही है जिस तुम्हारी आत्मा का, तुम उसही में चारित्र करो, रमण करो। वह श्रात्मचरित्र स्वयं तुम्हें जिननाथ अर्थात् अरहंत बना देगा। और तरन कहिए तुम्हारा अंतरात्मा जो 'जिन' उसमें चारित्र अर्थात् आत्मानंद में प्रवृत्ति - मग्नता ही सच्चा चारित्र है वही श्रात्म चारित्र तुम्हारी कल्याणरूप समस्त साधनों की सिद्धि और वृद्धि करेगा, ऐसा जानो ।
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१२८ - जनगन बावलो रे, ज्ञानी ममल स्वभाव । जनगन पागलो रे, ज्ञानी उवन स्वभाव । जनगन श्रांधलो रे, ज्ञानी दिप्ति स्वभाव । जनगन बाधिरो रे, ज्ञानी शब्द स्वभाव । जनगन काहलो रे, ज्ञानी सुबन स्वभाव । जनगन वेकलो रे, ज्ञानी कलन स्वभाव । जनगन बंध में रे, ज्ञानी मुक्तस्वभाव । जनगन लख बिली रे, ज्ञानी अलख लखाव । जनगन विवर मौ रे, ज्ञानी कमल स्वभाव | जनगन शरण सुइ रे, ज्ञानी मुक्त स्वभाव । इत्यादि प्रकार से संसारी जनसमुदाय की और ज्ञानी पुरुषों की तुलना श्री तारन स्वामी ने की है ।
९२६ - आयरन न्यान, विन्यान सुर्य | आयरन परम, जिन परम सुयं । ज्ञानपूर्वक श्राचर ए करने वाला स्वयं विज्ञान रूप हो जाता है। उत्तम आचरण करने वाला स्वयं परमजिन- परमात्मा हो जाता है । श्रात्मज्ञानपूर्वक आचरण या आत्माचरण को ही उत्तम आचरण कहा जाता है । आत्म-ज्ञान या श्रात्मभावना हीन क्रियाकांडों की उत्तम आचरण नहीं कहते - सदाचार कहा जाता है । "सदाचार सुखदायक व उत्तम आचरण कल्याणकारी होता है" असदाचारी को सदाचारी व मदाचारी को उत्तम आचरणवान बनना चाहिए ।
९३० - कमल कर्न सुइ जयनं, जय उववन्न विषय सुइ विलियं । कमल - आत्मा, कर्न- परिणाम आत्म-परिणामों की वृद्धि करने से; उत्पन्न हुई जो विषय भावनाएँ कि जिन वासनाओं ने संसारी प्राणियों पर विजय कर रखी है, वे विलायमान हो जाती हैं । ९३९ - भुक्तं संसार सुभावं न्यानी दिस्टति बक सुभावं ।
बंक अनिष्ट मइयो, न्यान अन्मोय भुक्त विलयंति ॥
संसारी मानव संसार स्वभाव का भोग कर रहा है, संसार में ही तन्मय हो रहा है। ज्ञानी पुरुषों की दृष्टि में यह स्वभाव बँक रूप है, टेढ़ा है— अनिष्टकारी है । अत: ज्ञानदृष्टि से प्रीति करके - अनुमोदना करके संसार स्वभाव को छोड़ना चाहिए ।
१३२ - शरण शंक भय बिलियो, मुक्ति पंथ दर्शन्तु । हे भव्य ! संसार का शरण, भय और शंकाओं के छोड़ने पर ही मोक्ष का पंथ दिखाई देता है ।